आज का दिन बड़ा सुहाना था ,मेरे कैमरे ने उठते ही मुझसे कहा चलो मतदान पर अपने जवान पीढी का विचार जानते है । फ़िर क्या था पहुच गए हम दोनों एक कंप्यूटर सेण्टर पर वहां हमने समीर से पुछा की आप ग्रेजुएट है इस बार किसको वोट देंगे वो बोले देना किसको है पापा जहाँ देते है वही दे दूंगा । हमने उनके पापा से संपर्क किया तो वो भी बोले वही दूंगा जहा बाबूजी देते आए है ।
कैसी विडंबना है ये आज भारत कंप्यूटर युग में पहुँच गया है और यहाँ के लोग सुसुप्त ज्वालामुखी की तरह हो गए है । जब भारत को आप के वोटो की ज़रूरत होती है तो आप सब सोते है और फ़िर एकदम से सिस्टम के खिलाफ भड़क जाते है ।
मेरे कैमरे ने मुझसे कहा फैज़ ये क्या हो गया है इस देश को आज लोग वोट देने के प्रति इतने सतर्क क्यों नही है ,मैंने कहा जाने दे ये यहाँ का राज-काज है किसी को सलाह देना भी ग़लत है ।
मेरी आप सब से अपील है वोट उसे दे जिससे हमारा देश और ज़्यादा तरक्की कर सके ।
आप नेताओ की आपसी बयानबाजी का शिकार न हो ।
उनके प्रलोभनों में ना आए ,सोच समझे के मतदान करे ,क्योंकि यह देश आपका भी है .................
4 comments:
swaagat hai aapkaa, bahut khoob likhte hain aap, shuruaaat achhee hai aage bhee likhte rahein.
सही चिंतन ,समाज का यही हाल है .अब जिम्मेदारी हम सबकी है कि कैसे इन्हें सही वोट के लिए प्रेरित किया जाय.
मेरी सांसों में यही दहशत समाई रहती है
मज़हब से कौमें बँटी तो वतन का क्या होगा।
यूँ ही खिंचती रही दीवार ग़र दरम्यान दिल के
तो सोचो हश्र क्या कल घर के आँगन का होगा।
जिस जगह की बुनियाद बशर की लाश पर ठहरे
वो कुछ भी हो लेकिन ख़ुदा का घर नहीं होगा।
मज़हब के नाम पर कौ़में बनाने वालों सुन लो तुम
काम कोई दूसरा इससे ज़हाँ में बदतर नहीं होगा।
मज़हब के नाम पर दंगे, सियासत के हुक्म पे फितन
यूँ ही चलते रहे तो सोचो, ज़रा अमन का क्या होगा।
अहले-वतन शोलों के हाथों दामन न अपना दो
दामन रेशमी है "दीपक" फिर दामन का क्या होगा।
@कवि दीपक शर्मा
http://www.kavideepaksharma.co.in (http://www.kavideepaksharma.co.in/)
इस सन्देश को भारत के जन मानस तक पहुँचाने मे सहयोग दे.ताकि इस स्वस्थ समाज की नींव रखी जा सके और आवाम चुनाव मे सोच कर मतदान करे.
सार्थक विचार, स्वागत ब्लॉग परिवार में.
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