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Friday, September 24, 2010

दासमुंशी कुछ तो शर्म करो

राष्ट्रकुल खेलो में अभी तक भरी खामिया सामने आई है , दिल्ली प्रशासन अभी भी इन सब बातो पर चुप्पी साढ़े है ,चाहे वो छत से टपकता पानी हो या फिर फुट ओवर ब्रिद्ग का गिरना । क्या खेलो के ये आयोजन सफल हो पाएँगे ...कैमरामैन सुरेश कुमार के साथ प्राची दिल्ली आ....................

उफ़ यार फैज़ कैसे होगा ये आयोजन जब हर तरफ खामियां ही खामियां है । कैमरे परीशां न हो ऐसा कुछ नहीं होगा ये दास मुंशी लोगों का खेल है वो ये नहीं दिखा रहे की कितनी भव्य तैय्यारी की है हमारी सर्कार ने इन आयोजन को सफल बनाने के लिए जिसकी बानगी कल देखने को मिली जब सी जी ऍफ़ के प्रमुख माइक फेनेल ये कह कर देश का सर गर्व से ऊँचा कर दिया की यहाँ की भव्यता तो बीजिंग को भी पीछे छोड़ देगी ।

फिर भी हमारे प्यारे दासमुंशी जी वो तो बस खमियां गिन्नाने पर तुले है क्या करे भाई पचता जो नहीं कुछ भले ही देश की मित्तिपलिद क्यों न होजे उन्हें तो बस ये दिखाना है की सरकार में कीड़ा कहाँ लगा है । भाई उनकी टी आर पीत का जो सवाल है हमारे देश की जितनी भाद हुई इन ३ महीनो में क्या कभी किसी आम जन माणूस ने ये सोचा था । कितनी आसानी से भारत की इज्ज़त को फूटबाल की तरह खेला गया और वो भी किसने समाज के एक महत्वपूर्ण स्तम्भ ने किया । कहाँ गयी न्यायपालिका क्या इन्हें रोकने का उसके पास कोई कानून नहीं है और ये दासमुंशी इतने अंधे हो चुके है की उन्हें हमारे देश की मन मरियादा का ख्याल नहीं रह गया क्या वो धरती माँ की इज्ज़त इस तरह उच्छालने के अधिकारी है । ।

आखिर कब सुधरेंगे ये लोग जो छादिक लाभ के लिए देश की अस्मिता को चोट पंहुचा रहे है ...............

बताइए मे आप सब से पूछ रहा हूँ आखिर कब तक होगा ये भारत माँ को बेईज़त करने का नंगा नाच,कब तक आखिर कब तक .........

Saturday, September 4, 2010

"धरती के भगवन "



आज धरती के भगवन के लिए ख़ास दिन है हाँ आज शिछक दिवस है ,....अरे फैज़ ये क्या बड बड़ा रहा है ...धरती के भगवन ...चुप रहो तुम मै उस भगवन की बात कर रहा हो जो हमारे मार्गदर्शक होते है हाँ हमरे समाज के रचियता


आज का यह शिचक दिवस मेरे लिए ख़ास भी है मेरे पिता भी आज रिटायर हो रहे हैवो भी एक इंटर कॉलेज से ४३ साल नौकरी करके आज रिटायर हुए हैमुझे फक्र है की मै उनका पुत्र हो .......


उस भगवन ने तो सिर्फ हमें धरती पर भेज दिया लेकिन धरती से परिचित करना , उस भगवन का परिचय करने के लिए एक और भगवन को धरती पर भेजा जिस को बार बार अवतार लेने की ज़रुरत नहीं है , ये भगवन एक मामूली इन्सान के अन्दर छुपे होते है , ये बिना ,किसी चढ़ावे के सबकी मनोकामना पूरी करते है कुछ भी जो उनके अधिकार में निहित है आज का दिन भारत के राष्ट्रपति डाक्टर सर्वपल्ली राधाक्रिश्न्णन का जन्मदिन भी जिन्होंने अपने इस जन्म दिवस को इस भगवन के नाम निहित कर दिया ...... वो आखरी शिचक दिवस जिसमे मै नहीं पहुच पाया मुझे ....हमेशा याद रहेगा । हाँ सितम्बर २००८ को मै दिल्ली में था नहीं पहुँच पाया अपने ग्रुजनो के बीच आज उन सब की बाते याद आती है . फैज़ ऐसे करो ये करो ,ये अच्छा किया ये ऐसे करते तो और अच्छा होता ...........अब मै आगे नहीं लिख पाऊँगा मेरी पलक भीग रही है .......


आज मै अपने कैमरे और सरे ब्लॉग परिवार की तरफ से धरती के भगवन को इस धरती को सुचारो रूप से चलाने की बधाई देता हूँ साथ ही उनको नमन करता हो ........

Saturday, August 21, 2010

"चिकना घड़ा"

अरे कैमरे तो इतना दुखी क्यों है आखिर क्या हुआ ....तुझे साप ने कटा है क्या । नहीं भाई फैज़ मुझे तो हमरे देश के समझदार मलाईदार नेतूने कटा है आज मैटीवी पर उनकी नौटंकी देखकर दांग रह गया है जिस देश में गरीब को दो वक्त की रोटियां भी बमुश्किल नसीब होती हैं वहां पर उन्हीं गरीबों के नुमाइंदों ने सैलरी में 200 पर्सेंट की वृद्धि होने के बावजूद संसद में शुक्रवार को जमकर हंगामा मचाया। सासदों के आचरण को देखते हुए सदन की कार्यवाही तक ठप करनी पड़ी। मौखिक रूप से सांसदों ने अलग से संसद का गठन किया। स्पीकर की भूमिका में बीजेपी के गोपीनाथ मुंडे दिखे तो लालू प्रसाद यादव कुछ ही पलों के लिए स्वघोषित प्रधानमंत्री बने नजर आए। अब सवाल यह पैदा होता है कि क्या सचमुच नेताओं की सैलरी बढ़ाने की जरूरत है। आइए जरा नजर डालते हैं नेताओं की बढ़ी हुई सैलरी और उनको मिलने वाली सुविधाओं पर :-
बेसिक पे पहले
16 हजार रुपये
बेसिक पे अब
50 हजार रुपये
संसदीय क्षेत्र भत्ता पहले
20 हजार रुपये
संसदीय क्षेत्र भत्ता अब
40 हजार रुपये
गाड़ियों के लिए रोड माइलेज रेट पहले
13 रुपये / किलोमीटर
गाड़ियों के लिए रोड माइलेज रेट अब
16 रुपये / किलोमीटर
पेंशन पहले
8 हजार रु. महीना
पेंशन अब
20 हजार रु. महीना
इतना ही नहीं सांसदों को सलाना डेढ़ लाख फ्री फोन कॉल्स करने की सुविधा है जिसके लिए उन्हें तीन लैंडलाइन और दो मोबाइल फोन मिले हैं। सांसदों के लिए एक साल में 34 हवाई यात्राएं भी मुफ्त हैं जिसकी कीमत पांच लाख रुपये के आसपास है। सांसदों के पति या पत्नी लिए भी सुविधाओं की कमी नहीं है। सांसदों की पत्नी या पति के लिए असीमित प्रथम श्रेणी की रेल यात्रा भी फ्री है। साथ ही, फ्री आवास सुविधा, फ्री फर्नीचर जिसके लिए सरकार 60 हजार रुपये प्रति महीना किराया पे करती है। अतिरिक्त सामान के लिए 15 हजार रुपये प्रति महीना किराया पे किया जाता है। इतना ही नहीं सांसदों के सोफा कवर्स, पर्दे, बाथरुम की सफाई भी मुफ्त ही होती है। सांसदों के लिए एक साल में पचास हजार यूनिट बिजली जलाने की सुविधा और चार हजार किलोलीटर मुफ्त पानी भी है। कुल मिलाकर हमारे सांसदों को 37 लाख रुपये सलाना मिलते हैं। क्या इन्हें और की जरूरत है ? (नवभारत
टेम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार)

अब तो ही बता देश की जनता भूकी नहीं मारेगी तो क्या होगा देश का किसान आत्महत्या नहीं करेगा तो क्या करेगा । जिस सरकार के पास ओचित भाव से किसानो का अनाज खरीदने के लिए धन नहीं है वो इन जनता के इन नुमैन्दो ,जो की जनता की आवाज़ उठाने के लिए उस पवित्र घर में मौजूद है , को कहाँ से इतना पैसा देगी ..और ये मूह फाड़ फाड़ कर जनता के हित की बात करने वाले नेताओं को उस वक़्त क्या हुआ था सब के सब एक सुर में राग अआलाप रहे थे की हमें और पैसा चाहिए शर्म आती है मुझे ये सब कहते हुए.........

हाँ बड़ी विडम्बना है ये देश की चल तुने तो सोचा पर बाकि सब नै सोचते चल उठ जा कम पर चलते है और आप भी जाइये वरना बॉस की दन्त .बीवी की मार , बेवजह की परेशानी ,क्या फायदा ये सब झेलना पड़ेगा ......

Sunday, August 15, 2010

स्वतंत्रत दिवस की बधाइयाँ


सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा....... हमारा सारे जहाँ से अच्छा ................

आज के दिन हमें आज़ादी मिली जी हाँ आज आज़ादी का पर्व है वो आज़ादी जिसके लिए हामरे देश के वीर सपूतों ने अपने जानो की बजी लगा दी। आज हम सब स्वतंत्र है ...लेकिन किसकी वजह से उन अमर सपोतों की वजह से मई अपने कैमरे और पूरे ब्लॉग जगत की ओर से उन वीर सपूतों को नमन करता हूँ ...............
भारत माता की जय .............भारत माता की जय ..............भारत माता की जय .............

Saturday, August 14, 2010

'आज़ादी की खुशियों के असली हकदार '


आपनी आज़ादी को हम हरगिज़ भूला सकते नहीं , सर कटा सकते है लेकिन सर झूका सकते नहीं .........
आज़ादी का यह तराना आज सभी की जुबान पर एक-एक रहा है लोग इसे गुनगुनाना चाहते है क्यों ?
क्योंकि कल के ही दिन हमारा देश आज़ाद हुआ था उन नापाक इरादे वाले अंग्रेजों से जिनकी राजनीति थी फूट डालो और राज करो ,लेकिन हमारे देश के वीर सपूतो ने तब से लेकर आज तक भारत देश को कभी अलग नहीं होने दिया यहाँ जितनी आज़ादी है शायद ही किसी देश में हो .................
लेकिन यार फैज़ सुच में ये किसकी आज़ादी है और किस्क लिए सबसे ज्यादा ख़ुशी का दिन है ......अरे यार सब जानता है की हमारे देश के फौजियों ने देश के लिए हमेशा जान की बजी लगाई है यह आज़ादी उनकी है हम उनके आभारी है ...........
हम
सब की तरफ से भारत माँ के उन वीर सपूतों को सलाम जिन्होने हमारी भारत माँ की रक्षा करते करते आपनी जन न्योछावर कर दी ....
जय भारत -जय जवान

Sunday, August 1, 2010

"आज दोस्ती अजनबी-सी लगती है"

आज मेरा कैमरा सुबह से एक कविता दोहरा रहा है कह रहा है आज दोस्ती का पर्व है । हाँ आज १ अगस्त है यानि फ्रेंडशिप डे ....वो कविता जो मेरा कैमरा दोहरा रहा था मुझे नहीं मालूम किसने लिखी है पर है बहुत अछि मैचाहता हो की आप सब भी इसे पड़े अछि लगे तो बताइयेगा ज़रूर ............
दर्द में कुछ कमी-सी लगती है
जिन्दगीअजनबी-सी लगती है
एतबारे वफ़ा अरे तौबा दुश्मनी दोस्ती-सी लगती है
मेरी दीवानगी कोई देखे धुप भी चांदनी-सी लगती है
सोंचता हूँ की मैं किधर जाऊँ हर तरफ रौशनी-सी लगती
है आज की जिन्दगी अरे तौबा मीर की शायरी सी लगती है
शाम-ऐ-हस्ती की लौ बहुत कम है ये सहरआखरी-सी लगती है
जाने क्या बात हो गयी यारों हर नजर अजनबी-सी लगती है
दोस्ती अजनबी-सी लगती है....... ।
आप सभी को दोस्ती के इस पर्व की ढेरों बधाइयाँ मेरे और मेरे कैमरे की तरफ से .........

Tuesday, July 27, 2010

"वो मानसून का पकौड़ा"

आ छि ........आ छि .......आ छि ....अरे कैमरे क्या हुआ तुझे छिक क्यों रहा है इतना ,मन किया था न बहार मत जा बम्बई में बारिश हो रही है , वैसे तू गया कहाँ था ? मै तुम्हारी दोस्त शिरीन से मिलने वाशी उसके ऑफिस गया था वहां पंहुचा ही था की बारिश शुरू हो गई । पर एक बात है उस्ताद मज़ा खूब आया .....

वहां बगल में ही जो विश्वज्योति रेस्टुरेंट है उसकी चाय पी रहा था तो बदन में सिहरन सी दौड़ रही थी...वहां से सड़क का नज़ारा साफ दिख रहा था लोग भागे जा रहे थे बारिश से बचने के लिए और कुछ मेरी तरह दिलेर लोग भीग कर चाय पीने आरहे थे तभी शिरीन ने मुझे फोन किया पुछा कहाँ हो मैंने कहा बस चाय और पकौड़े का मज़ा ले रहा हूँ .....बस फिर क्या था कर दी फरमाइश लेते आइये मै भी भीग चूका था सो उसी बारिश में भीग कर नवी मुंबई के सेक्टर १७ स्थित शिव बिल्डिंग में चौथे तलपर पहुँच गया । वहां जब पहुच तो भीगे चूहे की तरह था आप की दोस्त भी हँसे बिना नहीं रह सकी ........

मज़े की बात तो ये है की पकौडे की और चाय की खुशबु से सभी की नाक की इन्द्रियां मचल गई और सभी दौड़ पड़े मेरी तरफ भाई ये लीजिये तौलिया और सर पोछिये लाइए ये पैकेट मुझे मुझे मुझे दे दीजिये और शिरीन जी को तो मज़ा आ रहा था उन्हें तो जैसे हंसी का दौरा आया था । कुछ ही देर में पूरा ऑफिस हम दोनों के साथ बैठा पकौड़ो का मज़ा ले रहा था, क्या पकौडे था और साथ में हो रही रिम झिम बारिश और अदरक वाली चाय । तुम भी वहां होते तो मज़ा आजाता .........

अच्छा ये बता तो वापस कैसे आया ? अरे वो शिरीन जी ने ड्रॉप किया न यहाँ तक ...मै तो अब ज़िन्दगी भर नहीं भूल सकता ये पकौड़ा आ छि आ छि .............काश मै भी वह होता सच कितना मज़ा आया होगा ये बारिश है ही ऐसी चीज़ पर मुंबई तो बारिश आते ही चिल्ला उठती है हमरे उत्तर परदेश की तरह नहीं है की सबका चेहरा खिल उठे बारिश देख कर ......

Wednesday, July 21, 2010

"हिम्मते मर्दानी - मददे झाँसी की रानी"

अरे फैज़ कहा थे तुम कितना अच्छा नाटक आ रहा था झाँसी की रानी ......."खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी "...जनता है कैमरे इस नाटक का लड़कियों के मन पर बहुत गहरा और अच्छा असर देखने को मिला है तभी ये नाटक इतने कम समय में लोकप्रिय हो गया है । आज लड़कियां रानी लक्ष्मी बाई की तरह देश के कार्यों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेना चाहती है खासकर फ़ौज में भर्तीहोने के लड़कियों के जज्बे में एका एक बढ़ोत्तरी हुई है। सब घरों में लोग लड़कियों को झाँसी की रानी के किस्से सुना रहे है .......

पहले एक कहावत हुआ करती थी "हिम्मते मर्दा - तो मददे खुदा " मेरी एक दोस्त रेनू ने तो एक नई कहावत रच डाली है ये सीरियल देख कर "हिम्मते मर्दानी - मददे झाँसी की रानी " क्यों अच्छीहै न , हाँ हाँ बहुत अच्छी है और सही भी है , उस लक्ष्मी बाई ने हमें फिरंगियों के अत्याचार से बचाया था और आज की अनगिनत लक्ष्मी बाई हमें यहाँ बैठे धूर्तों से बचाएंगीजो आज हर छेत्र में विराजमान है ...............

Monday, June 28, 2010

"संकटमोचक के दूत बने संकट का पर्याय "


आज मै काफी दिन बाद बनारस लौटा दिल्ली गया हुआ था अपनी जॉब के सिलसिले से मेरे कैमरे ने कहा चल यार फैज़ छत पर सोते है फिर क्या था हम दोनों छत पर चले गए .............
सुबह मैंने आँख खोली तो खुली की खुली रह गयी एक बंदर के बच्चे ने मेरे पैर की अपने अपने मूह में रख रखा था और उसे चाट रहा था मेरी तो आवाज़ ही अटक गयी खैर वो मुझे जगता देख करे वहां से भाग गया .................
जी हाँ ये हल है हमारी कशी नगरी का जहाँ आज कल संकटमोचक के दूत संकट का पर्याय बन गए है ये अपनी मन मणि सब करते रहते है जब कहते है आप के घर में प्रवेश कर जाते है और फिर वहां उधम मचाते है ,आप बेबस है ये स्य्भा जब मोर्निंग वाल्क के लिए निकलते है तो फिर रस्ते में आने वाले किसी भी वास्तु को नहीं छोड़ते चाहे वो कपडा हो या फिर बर्तन ये उठा ले जायेंगे और दूर कही छोड़ देंगे ....
मैंने पता लगाने की कोशिश की तो इधर बीच अस्पतालों में बन्दर के द्वारा कटे गए या घायल किये गए मामलों में बढ़ोतरी हुई है। ये कभी भी आक्रामक हो जाते है जैसे इन्हें किसी ने ऐसा बना दिया हो।

आखिर मेनका गाँधी जी का इसपर क्या सोचना है , वो तो जन्तुओ पर कुछ होते ही चीलाने शुरू कर देती है ...अब बताये इन मासूम इंसानों का क्या जिन्हें बिना बात की सजा मिल रही है क्या किया जाये इन बंदरो का ........
हमें और जिला प्रशासन को भी इस बारे में सोचना होगा की बन्दर इतने क्रूर क्यों होगये है ..........