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Monday, March 29, 2010

"भारतीय सिनेमा जगत के पोस्टर -अंतिम भाग "

यह भाग इस रोचक जानकारी का अंतिम भाग है । जैसा की मैंने पिछले भाग में अंत में कहा था की हम अगले भाग में "अन्ना - रस्कला" की बात करेंगे तो आप सभी ये समझ गए होंगे की मै तमिल फिल्मो के पोस्टरों की बात कर रहा हूँ ।

तमिल फिल्मो के पुराने पोस्टरों में शुरू से ही हीरो-हिरोइन का ही बोल बाला रहता था पर पहले हीरो प्यार और रोमांस के मूड में रहता था वो हिरोइन के साथ डांस करते हुए या फिर गलबहिया डाले पोस्टर में चिपका रहता था । या हिरोइन उसकी गोद में सर रखकर लेती रहती थी ।


आज कल के तमिल पोस्टरों के बात करे तो यहाँ सिर्फ विलेन तयेप हीरो को जगह मिल पाती है कभी कभी हिरोइन को भी बच कुची जगह में चिपका दिया जाता है । पोस्टर देख्क्लर कोई भी तमिल भाषा को जानकार न हो कह सकता है की यह तो विलेन है पर सर जी यही तो आप की भूल है वह विलेन नहीं फिल्म का सुपर मैं सरीखा हीरो होता है जो पोस्टर के भीमकाय आकर में समाया रहता है । उससे जगह छूट जाती है तो फिल्म का नाम और दिएरेक्तेर का नाम छाप दिया जाता है। आज कल वहां भी कुछ एक पोस्टरों में फिर से हीरो हिरिन एक साथ नज़र आने लगे है यहाँ के पोस्टरों में विलेन के लिए कोई जगह नहीं होती क्योंकि वो फिल्म का सबसे कमज़ोर पात्र होता है वो चाहे जो भी करे हीरो के पास उसकी काट मौजूद होती है ।


तो ये था हिंदी सिनेमा जगत के पोस्टरों का इतिहास आप को यह सफ़र कैसा लगा ज़रूर बताये ......

Saturday, March 20, 2010

"भारतीय सिनेमा जगत के पोस्टर-बदलता चेहरा भाग ४ "

भारतीय सिनेमा जगत में बंगला फिल्मो का बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है । इन फिल्मो के पोस्टर की बात करे तो काफी कुछ कहते हुए नज़र आते है । पिछले साल एक फिल्म आई थी "लव" आप यही घबरा गए होंगे की बंगला फिल्म का नाम वो भी अंग्रेजी में क्या बात है , तो जनाब ये है आज का बंगला सिनेमा । उस फिल्म में कॉलेज गोइंग स्टुडेंट को इश्क फरमाते हुए दिखाया गया था पर मुझे कही से हीरो हिरोइन कॉलेज गोइंग नहीं लगे पर पोस्टर के क्या कहने दिरेक्टेर ने हिरोइन को एक छोटी सी साईकिल पर बिठाकर उसका फोटो खिचवाया और उसे पोस्टर में छाप दिया अब वो "जवान " हो गयी फिर आई हीरो की बारी तो उसे एक रेड कलर के जैकेट में पोस्टर में चिपका दिया फिर क्या था हो गया वो टीन ग्रुप में शामिल।
पुराने जामने की बंगाली फिल्मो के पोस्टर में सभी विलेन बन्दूक लिए हुए पोस्टर के कोनो में चिपके रहते थे उनके साथ में हीरोइने होती थी जो अधिक कपड़ों में भी कम ढकी होती थी ऐसा लगता था की वो विलेन को दावत दे रही हो , और बीच में हीरो और उसके दोस्तों कइ मरियल से फोटो होती थी की अब दम निकला की तब दम निकला , या फिर अकेले हीरो बाबु होते थे जो अपनी प्रेमिका के वियोग में सुध बुध खो चुके थे पुरे पोस्टर पर उन्ही का कब्ज़ा होता था
आज कल की बंगला फिल्मो के पोस्टर में भी एक उबाल देखने को मिलता है ये क्या है मुझे नहीं पता पर अब पोस्टर का ज़्यादातर भाग हीरोइने ही झटक लेती है हीरो तो बेचारा आधा अदृश्य रहता है । या फिर हीरो और हिरोइन का सीन होता है कुल मिलकर हम यह कह सकते है की बंगला सिनेमा के पोस्टर भी अब रोमांस और प्रेम के अधीन हो गए है जहाँ सिर्फ हीरो हिरोइन को ही जगह मिल पाती है बाकि सब एक लाइन से पोस्टर के एकदम नीचे होते है । पोस्टर के बीचो बीच फिल्म का नाम लिखा होता है जो ज़्यादातर बंगाली भाषा या इंग्लिश में होता है ।
तो ये था बंगला फिल्मो का पोस्टर पुराण अब अगले भाग में हम "अन्ना-रास्कला" की बात करेंगे ......

Wednesday, March 17, 2010

"भारतीय सिनेमा जगत के पोस्टर - बदलता चेहरा भाग ३"

आएये बात को आगे बढ़ाते है आज हम बात करेंगे पुरानीफिल्मो की जिन फिल्मो में हीरो की ही-मैन की छवि पेश की जाती थी यानि हीरो हमेशा उची उची फेकम्छाप मचाये रहता था । ओं फिल्मो के पोस्टरों में हीरो या तो अकेला दिखाई पड़ता था या फिर अपनी माँ के आँचल में सर छुपाये बैठा रहता था । या हीरो के माँ बाप विलेन के आगे अपने जाते जाते तो ये हुए दिखाए जाते थे, साथ में हीरो का बचपन का सीन होता था जो अपनी माँ को छुड़ाने की भरपूर कोशिश करता था । या सबसे ज्यादा सिर्फ और सिर्फ हीरो - हिरोइन ही पुरे पोस्टर पर अपना कब्ज़ा जामये रहते थे , जिसमे एक दो भाव्पूर्द दृश्य होते थे । मैंन पोस्टरों को तो नहीं देखा उस ज़माने के लेकिन हाँ इन्ही दिनों मेरे हाथ में प्रदीप कुमार जी की एक यादगार फिल्म "भीगी रात " लग गयी फिर क्या था मैंने पूरी फिल्म देखि तब समझ में आया की क्या होता होगा उस ज़माने के पोस्टर में । उस फिल्म कॉलेज से ताज़ा ताज़ा निकले प्रदीप कुमार जी मीना कुमारी जी से इश्क फरमाते है । एक सीन में अशोक कुमार जी को बताते है की मे कॉलेज में निशाने बाज़ी में चैम्पियन था तो दुसरे में तैरने में यानी की अगर पढाई की बात हो तो वहां भी चैम्पियन था यानि हर छेत्र में चैम्प ,लेकिन मैंने अपने एक बुज़ुर्ग से पुछा की क्या कभी पुराणी फिल्मो के पोस्टरों पर हीरो का कॉलेज गोइंग सीन होता था की नहीं तो वो बोले अरे बिटवा अगर इ सीन पोस्टर पर दिखाए तो फिलिम कौनो नहीं देखे जाते सब तो विलेन का वाद विवाद देखने जाते या फिर उनकी लव स्टोरी देखने जाते....कुल मिलाकर हम कह सकते है की पुराने ज़माने में पोस्टर लव और रोमांस के चक्कर में पड़ा हुआ था
तो ये था तीसरा भाग अगला भाग जल्द ही लिखने की कोशिश करेंगे हम दोनों जहाँ बंगला सिनेमा के पोस्टरों की बात होगी ।
आप सभी को मेरे और मेरे कैमरे की तरफ से नूतन वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये .........

Monday, March 15, 2010

"भारतीय सिनेमा जगत के पोस्टर- बदलता चेहरा भाग २ "

राउं लोगन के राम राम आप सब इ सोचत होइए की इ का इ तो भोजपुरी बोले लगन बाकि बात इ है की आज हमनी भोजपुरी की बात करल जाई त ....ठीक है तो सुनिए मेरा कैमरा जब भोजपुरी फिल्मो के बारे में बता रहा था तो वो मुझसे भोजपुरी में ही बात कर रहा था सो मैंने भी सोचा ........

२- जहाँ तक भोजपुरी पोस्टरों की बात है तो सब जानते है की भोजपुरी की ज़बरदस्त "फिल्म नदिया के पार "पर इसका पोस्टर बड़ा ही सादा था सिर्फ पोस्टर में सचिन जी और उनकी को स्टार ही जगह पा पाए थे । आज कल के पोस्टर की बात करे तो भोजपुरी भाषा के पोस्टर में बहुत कुछ इनकार्पोरेट करना पड़ता है । तीन-चार पेज में हीरो-हिरोइन , दो पेज में विलेन , तीन पेज में हीरो के माई-बाबु, और दो पेज में प्रदर्शनी डांस करने वाली लड़की या सी -ग्रेड हिरोइन , एक साइड में विलेन का बाप हिरोइन से ज़बरदस्ती करता हुआ ,और हाँ एक बात और इ फोटू- सोटू से कुछ नहीं होता भोजपुरी पोस्टर का जब तक पोस्टर के नीचे फिलिम के कम से कम ५ गाना का पहिला दो लाइन न हो , मतबल कुल मिलकर १० लाइन की जगह खली गाना खातिर । अब इ १० लाइन में कम से कम ४ लाइन ता डबल मीनिंग का हैबे करेगा न भाई । और साथ में मुझिक दिरेक्टेर का नाम और गाना लिखने वाले का नाम । कुल मिलाजुलाकर लगता है की दिरेक्टेर पूरा फिलिम्वा पोस्टर पे ही दिखने की तैय्यारी किया रहा लेकिन थोडा सा जगह कम पद गया , इसलिए पूरा फिलिम देखे करतीं सलीमा हाल के अंदर जाएके पड़ी .....

तो ये था भोजपुरी पोस्टर का सफ़र अगले भाग में हम पुरानी ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मो के पोस्टर की चर्चा करेंगे जिसमे हीरो-हिरोइन गले में हाँथ डाले नज़र आते थे .......

Sunday, March 14, 2010

"भारतीय सिनेमा जगत के पोस्टर- बदलता चेहरा "

हमारा भारतीय समाज काफी दिनों से फिल्मो का मज़ा ले रहा है । ये समाज शुरुआत से ही फिल्मो का आधा मज़ा उनके पोस्टर देख कर लेता आया है । जैसे जैसे फिल्मो को बनाने की सोच बदली वैसे ही वैसे उनके पोस्टर भी, मेरे कैमरे ने भी इस बात का जायजा लेने की सोची और निकल पड़ा अपनी खोज पर , आज मई उसका पहला भाग यहाँ पेश कर रहा हूँ जिसमे शुरुआत हिंदी सिनेमा के पोस्टरों से हुई है .............
१- पुराने ज़माने में पोस्टरों में कभी हेरोगिरी करता हुआ हीरो ,और हिरोइन्गिरि पर उतारू हिरोइन तो रहती ही थी , परम चिरकुटई करता हुआ हीरो का कामेडियन दोस्त भी पोस्टर में चिपकना नहीं भूलता था । इन लोगों से थोड़ी जगह सेव कर के विलेन भी पोस्टर में अपनी जगह सुरछित कर लेता था और उसे भी एक बन्दूकके साथ छाप दिया जाता थाकुल मिलकर बड़ा ब्म्फाट पोस्टर बनाया जाता था , ताकि पब्लिक सिनेमाघर की तरफ दौड़ लगा दे । लोग फिल्म देखने के बाद ये भी कहते सुने जाते थे की अगर जितनी मेहनत पोस्टर पर की गयी है अगर फिल्म पर करते तो फिल्म सुपरहिट होती ।
आज कल के ज़माने पोस्टर की बात करे हिंदी सिनेमा जगत की तो बात एकदम अलग हो जाती है । पोस्टरों में बेचारे कामेडियन और विलेन के लिए जगह ही नहीं बची है । पुरे पोस्टर पर हीरो हिरोइन का कब्ज़ा हो चूका है । हीरो अपने सिक्स पैक - ८ पैक दिखता रहता है यानि पोस्टर देखकर ये कोई नहीं कह सकता की ये हीरो है फिल्म का या विलेन कुल मिला जुलकर ये कहा जा सकता है की आज कल का पोस्टर देख कर सिर्फ और सिर्फ दुविधा बढती है की फिल्म में हीरो कौन है, कौन हिरोइन है , कौन विलेन है ..........
तो ये था हिंदी सिनेमा जगत का पोस्टर अगले भाग में भोजपुरी की बात होगी तब तक के लिए आज्ञा .....

Thursday, March 4, 2010

"काशी की होरी"

आप सब से किया हुआ वादा पूरा कर रहा हूँ । मेरे कैमरे ने जो देखा काशी की होली में उसे यहाँ पेश कर रहा हूँ शायद आप सब को पसन्द आये ...........























































































































Monday, March 1, 2010

"हमारा देखिये चेहरा बजट की मार है - होली"

वह मज़ा आ गया क्या हुडदंग था होली का , अब तो लगभग समाप्ति की तरफ अग्रसर है या हुडदंग । मै और मेरा कैमरा अभी अभी दशास्वमेध घाटसे रंगों में सराबोर होकर आये है । वहां एक अख़बार का टुकड़ा उसे चहेलकदमी करता हुआ दिख गया जिसे वो उठा लाया , काफी पुराना सा आधा फटा हुआ था पर उसमे किसी अज्ञात कवी की रचना का उल्लेख था , इत्तेफाक से वह भी होली पर शायद कोई उसे पुरे अख़बार को लेकर आया होगा और वो होली का हुडदंग देखकर उसमे से अलग हो गया होगा । उसी को यहाँ पेश कर रहा हूँ शायद आप को पसंद आये .......

अहा , क्या चीज़ है रंगों का प्यारा मेल - होली में , फरखाबादका जैसे है खुल्ला खेल - होली में ।
छिछोरों - शोहदों की देख धक्कमपेल - होली में , किसी को बाह के घेरे किसी को जेल - होली में ।
न कोई पराया है न कोई बेमेल - होली में , बिना पहिये बिना पटरी के चलती रेल है - होली में ।
व्यवस्था और गुंडों का हुआ फिर मेल - होली में , करें क्या , सिर्फ जनता का निकलता तेल - होली में ।
उमंगों और मस्ती की है रेलमपेल - होली में , उधर लथ्मारियों में चली - ठेलमठेल - होली में ।
इशारों और फुहारों की लगी है सेल - होली में , कन्हैया भेजता राधा को अब ई मेल - होली में ।

यह कविता पढ़कर मुझे भी कुछ तुकबंदी करने की सोची और इसी लयमें कुछ लिख डाला जो मैंने होली के हुडदंग में नज़र आया .......
बड़ी दमदार होली है , बड़ी तैयार है - होली , है खली घर मगर पूरा भरा बाज़ार है - होली ।
ये डाकू ,चोर, रहजन है , बड़ी बटमार है - होली , हमारा देखिये चेहरा बजट की मार है - होली ।