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Thursday, July 30, 2009

जंगल का राजा कौन "आदमी या शेर"

उफ्फ्फ कैसा डरावना मंज़र रहा होगा वो जब वो लोग शेर का शिकार किया हुआ मांस उसके मुँह से छीन ले गए । ये सब बातें मेरा कैमरा मुझसे बता रहा था । उसने मुझसे पूछ लिया की आख़िर ये मनुष्य कितना बड़ा जानवर है की वो जंगल के राजा शेर का भी भोजन छीन ले रहा है । अब आप कहेंगे की मेरे कैमरे का दिमाग ख़राब हो गया है ,लेकिन ये सच है । बी.बी.सीकी ताज़ा जारी रिपोर्ट के अनुसार भूख से बेहाल कैमरून के गांवों में रहने वाले लोग इन दिनों जंगल के राजा के घर में सेंध लगाने से भी नहीं घबरा रहे ।.........


शेर ने शिकार मारा और उससे निकलते गर्म ख़ून पर ज़ुबान फिराना शुरू ही किया कि गांववाले पहुंचे, किसी तरकीब से उसे वहां से भगाया और मांस लेकर रफ़ूचक्कर । अंग्रेज़ी में इसे क्लेप्टोपैरासाइटिज़्म कहते हैं, जिसमें जंगल के बड़े शिकारी यानि शेर, लकड़बग्घा, चीता एक दूसरे का मारा हुआ शिकार चुरा लेते हैं । लेकिन अफ़्रीका के जंगलों में काम कर रहे पर्यावरणविदों का कहना है कि अब इंसान भी इस चोरी में शामिल हो गए हैं और ये धड़ल्ले से हो रहा है । chinta की बात ये है कि धीरे धीरे ये आदत फैलती जा रही है और कैमरून में घटते हुए शेरों की संख्या के लिए ये ख़तरे की बात है ।


यही नही शेर से उसका शिकार चुराते हुए स्थानीय गांववालों की रिपोर्ट अफ़्रीकन जरनल ऑफ़ इकोलॉजी में भी प्रकाशित हुई है । इसमे एक शेर और शेरनी पर कुछ समय से नज़र रख रहे वैज्ञानिकों ने पाया कि उन्होंने कुछ ही देर पहले एक बड़े से हिरण का शिकार किया था और उसे खा रहे थे जब उन्हें वैज्ञानिकों के वहां होने का एहसास हुआ । शेर और शेरनी दोनों ही पलक झपकते ही झाड़ियों में छिप गए । वैज्ञानिक वहां से हट गए लेकिन कुछ घंटों बाद जब लौटे तो देखा कि वहां कुछ स्थानीय गांववाले जुटे हुए थे और बाहरवालों को देखकर वो भी छिप गए । वैज्ञानिकों ने पास जाकर देखा तो पता चला कि गांववालों ने चाकू से सारा मांस निकाल लिया था, वहीं से पत्ते लेकर उसे पैक भी कर लिया था और बिचारे जंगल के राजा और रानी के लिए छोड़ा था बस सर, खुर और बची खुची अंतड़ियां । उन्हें दूसरा ऐसा ही नज़ारा दिखा कैमरून के वाज़ा राष्ट्रीय पार्क के अंदर जहां शेर को भगाकर उसके मारे हुए हिरण पर क़ब्ज़ा कर लिया गया ।वैज्ञानिकों का कहना है कि बोरोरो जनजाति के लोग अक्सर ये करते हैं और आमतौर पर शेरों को भगाने के लिए लाठियों और आग का सहारा लिया जाता है ।


शोधकर्ताओं का कहना है कि इसका शेरों की संख्या पर गंभीर असर हो सकता है क्योंकि एक शिकार को मारने में शेरों को ख़ासी मेहनत करनी होती है और उसके बाद भी अगर उन्हें भूखा रहना पड़े तो ज़ाहिर है उनकी ताक़त कम होगी । पिछले कुछ सालों के सर्वेक्षणों में इन जंगलों में शेरों की संख्या घटती नज़र आ रही है और एक अनुमान है कि यहां हर साल छह शेर ग़ैरक़ानूनी तौर पर शिकार किए जाते हैं,और अगर उनका निवाला भी उनके मुंह से छिन रहा है तो फिर भगवान ही बचाए जंगल के सम्राट को ..................!!!!!!!

Monday, July 27, 2009

"जय हो"


कल मै बहुत आहत था , मैंने ये कभी नही सोचा था की हमारे देश में हमारे शहीदों के साथ ये होगा । आप सोचेंगे आख़िर हुआ क्या तो सुनिए ॥कल मै जब सुबह टी। वी देख रहा था तभी मेरे घर के बगल के एक बच्ची ने मुझसे एक सवाल पूछा की अंकल ये कारगिल क्या है सुबह से दिखा रहे है टी.वी पर .........तभी से मै अपने आप को कोस रहा हूँ की क्या होगया है हमारे देश के रखवालों को , कैसी हो गई है हमारी शिछा की हम १० साल पुरानी घटना को अपनी आने वाली पीढी की दिमाग में नही डाल पा रहे है । ...समाज के वो लोग कहाँ मर रहे जो समाज उत्थान का बीडा उठाये हुए है । इनको भी आज का दिन भी बस एक पार्टी सम्मेलन की तरह दिखाई देता है बस लंबा लेक्चर दिया , और वही रता रटाया शेर पढ़ दिया की ....शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले ,वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशा होगा । लेकिन उन्हूने सोच है की कल को आने वाली पीढी को क्या बताएँगे .....,..क्यों आज तक किसी कारगिल शहीद की वीरगाथा किसी माद्यमिक बोर्ड की किताब में नही छापी क्या इसके पीछे हमारा सिस्टम दोषी नही है । .......क्यों फिर ये कहा जाता है की शहीदों के परिजन बेवजह हो-हल्ला मचाते है । जब आप उनके उस बेटे को सिर्फ़ एक दिन याद करेंगे जिसने आप की जिंदगी के कितने साल बचाए तो उनका मन आहत नही होगा । ....सभी राज्य सरकारों को चाहिए की वो अपने यहाँ क्लास १ से अपने राज्य के अभी तक के सभी शहीदों की वीरगाथा उनकी जीवनी के साथ छापे और चलाये । तब जाकर उन शहीदों को सही श्राधांजलि मिलेगी ।


क्या हम भी उनके लिए कुछ कर सकते है ? यदि हाँ तो आइये आज एक संकल्प करते है की हम उन देश के जवानो की वीरता के किस्से इस तरह से आम करेंगे की बच्चा बच्चा उनकी वीरता का गुडगान करेगा .............

Sunday, July 19, 2009

"पढ़-पढ़कर बालक हुए लछ्य हीन बदहाल, है व्यवसाय न नौकरी ,जीवन है जंजाल"


कल मेरा कैमरा अस्पताल से लौट आया मैंने उसे एक पत्रिका दी ताकि वो बोर न हो ,थोडी ही व्यापार बाद वो मेरे पास आया और मुझे कुछ पढ़ कर सुनाया । वही मै आप को पढ़ना चाहता हूँ । शायद आप को सतीश वर्मा जी का यहाँ रोचक लेख पसंद आएगा ................

जीवन में अब रस नही ,नीरस है परिवार, माता-पिता सर्विस करें , शिशूग्रह है व्यपार ।

स्नेह कहाँ ममता कहाँ 'कीटी-पार्टी' बीच ,बच्चे आया पालती जो धन रही उलीच ।

अठमासे शिशु को नही मम्मी पास सुलाए ,बिगडे फिगर न दूध भी डिब्बा बंद पिलाये ।

माता अब मम्मी बनी पिता बन गए अब डैड , एक बरस का शिशु रहे सोता सिंगल बैड ।

इकसठ में था लव हुआ बासठ हुआ तलाक़ , हुए रास्ते अलग अलग तो बच्चा हुआ तलाक ।

शिछा बिकती है यहअन गली मुहल्ले गाँव , शिशु के पुस्तक भार से सीधे पड़े न पाँव ।

विद्यालय ये है नही क्रूर विद्यालय मात्र ,दुर्वट पुस्तक भार को सहते कोमल गात्र ।

शिछालय तो बन गया हितकारी व्यापार , अल्प्वित शिछ्क सुलभ शिशु की मारामार ।

अब नही रहे वो गुरु -गुरु रहे शिश्यधन छीन , कैसे विद्या पाएंगे श्रधा हिन् मलीन ।

बीस दुधमुहे चल दिए चढ़ के शिछा माहि , भारी बसता लादकर सब विद्यालय जाहि ।

मिले चार सो पे जिसे वह मिस्ट्रेस कहलाये , मैनेजर की नौकरी जो हर शाम बजाये ।

ड्रेस-बेल्ट,कापी-कलम, बिल्ला-बूट-किताब ,विद्यालय से ही मिले पुरा रखे हिसाब ।

पढ़-पढ़कर बालक हुए लछ्य हीन बदहाल, है व्यवसाय न नौकरी ,जीवन है जंजाल ।

उलटा और डरावना पढ़ा रहे इतीहास ,जैसे मुर्दा देश यह पीटने का अभ्यास ।

भवन-तात्पति नही , शिछ्क खडिया नही, बालाहार बाज़ार में ,टीचर निज ग्रह माही ।

चुराहे पर देश है लुटा पित्ता बदहाल , पग-पग मदिराल्ये खुले ,जनता हुई निहाल ।

और अंत में एक लाइन मेरी भी जोड़ लीजिये की.........

नित्य सिकुड़ता जा रहा भारत का भूगोल , तनिक न चिंता देश की नेता गोल-मटोल ।


Sunday, July 5, 2009

"मुर्दा कब्र के बाहर आया"

सभी कहते है की भारत देश का क़ानून सबसे अच्छा है । लेकिन मैकहता हूँ की यहाँ का कानून सबसे ख़राब है । आप सोच रेहे होंगे मैंने ऐसा क्यों कहा तो सुनिए .........ये वही क़ानून है न जिसे कभी पूजा जाता था कहा जाता है की या सभी नागरिकों को सामान रूप से जीने का हक देता है लकिन अब तो कोर्ट-कचहरियाँ गडे मुर्दे भी उखाड़ने से गुरेज़ नही करती । ऐसे आदेशों की बयार सी आगई है जिनमे लाश को कब्र से बहर निकल कर उनका दुबारा पोस्टमार्टम किया गया । आख़िर क्या वजह है की डॉक्टर सही से पोस्टमार्टम रीपोर्ट नही बनते और फ़ैसला सुननाने में दिकतें आती है । ...........


आप ही बताये यदि कोई हिन्दू लड़की या व्यक्ति मारा जाता jammu में तो आज हाईकोर्ट उसका दुबारा पोस्टमार्टम कराने का आदेश कैसे देती । क्यों नही ऐसे डॉक्टरों को दंड मिलता जो ग़लत या भ्रामक रीपोर्ट बनते है। कभी आप ने सोचा है की क्या बीतती है उनके परिजनों पर जब उनकी लाश दुबारा कब्र से बाहर निकाली जाती है। ....अभी हाल ही में हमारे बनारस में भीएक दहेज़ प्रताडित महिला का शव कब्र से बाहर निकला गया जिसको लेकर कई दिनों तक चर्चो का बाज़ार गर्म रहा फिर सभी खामोश हो गए । आख़िर कब तक खामोश रहेगा हमारा समाज । क्या समाज के ठेके दार आज भी अपने हित के लिए खामोश रहेंगे ? क्या हाईकोर्ट इस पर भी कोई प्रावधान बनाएगी या फिर ऐसे ही लोगों की भावनाओं को चोट पहुचती रहेगी । क्या उसे सिर्फ़ समलैंगिक लोगों के हित का ध्यान आया है या फ़िर समाज की इस घटना पर भी कोई क़ानून बनने का ख्याल आया है । उसे चाहिए की कोई ऐसा क़ानून बनाये की आतंरिक परीछाद रिपोर्ट में जो बातें हो वो एक बार में सही लिखी गई हो नाकि ग़लत , ताकि किसी भी महिला या पुरूष को मरने के बाद न सताया जाए। ..........

आप ही बताये क्या मे ग़लत कह रहा हूँ क्या किसी धर्म में ऐसा लिखा गया है की मरने के बाद व्यक्ति को यातनाए दी जाए वो भी बार बार । सोचिये और मुझे बताइए मे इंतज़ार कर रहा हूँ उन माँ-बाप की तरफ़ से जिन की बेटियों और लड़कों के साथ ऐसा हुआ ..............

Thursday, July 2, 2009

"समलैंगिक फ़ैसला"

आज मेरा कैमरा अस्पताल में भरती है ,कल रात से उसकी तबियत ख़राब है । मुझसे डॉक्टर ने पुछा की क्या हुआ है इसे तो मै बता भी नही पाया । पर आप से बताना चाहता हूँ .............

कल जब सुप्रीम कोर्ट का समलैंगिक फ़ैसला आया तभी से ये बहकी बहकी बातें कर रहा था । आखिर रात होते होते इसे तेज़ बुखार चढ़ गया । ये नींद में बडबडा रहा था की मुझे भी एक मेरी तरह का कैमरा लाके दो । मै बहुत परेशान हो गया और उसे यहाँ ले आया ।

खैर ये तो मेरा कैमरा था लकिन आप क्या कहते है इस समलैंगिक सरकार के इस समलैंगिक फैसले के बारे में । क्या प्रकृति के नियमो के विरूद्व जाना सही है । क्या संस्कृति प्रधान देश में ये सब करना उचित है । जिस तरीके से हाईकोर्ट ने समलैंगिक सबंधों को अपराध करार देने वाले १४९ वर्ष पुराने कानूनों को बुनियादी अधिकारों का उलंघन बताया है, क्या वो सही है। हाईकोर्ट की न्यायाधीश ऐ.पी.शाह और एस .मुरलीधर की पीठ ने कहा की १४९ वर्ष पुर्व जारी क़ानून ३७७ सविधान की धारा १४,१५,१९ वा २१ का उलंघन करती है जिसमे मानवाधिकार की बात की गई है । ..........

angrezon ने जो १४९ वर्ष पहले क़ानून बनाया था शायद वो सही था , सन १९४१ में उर्दू लेखिका इस्मत चुग़ताई को अपनी कहानी "लिहाफ"के लिए सज़ा भुगतनी पड़ी थी जो इसी समलैंगिक रिश्तों पर आधारित थी । क्या कभी किसी ने ये सुना है की किसी जानवर ने भी ऐसा किया है ...जब हमारे इस पवत्र संस्कृति वाले देश में जानवर भी इसे पाप समझते है तो फिर हम आप कौन होते है प्रक्रति के नियमो से छेड़ छाड़ करने वाले । कुछ लोगों ने खजुराहो की मूर्तियों की बात कही है की जो समलैंगिकता का विरूद्व करते है उन्हें खजुराहो की मूर्तियों देखनी चाहिये । उनसे कोई ये पूछे की तब गुरू को भगवान् का दर्जा मिलता था अब क्यों नही मिलता , तब नारी देवी सामान थी अब क्यों नही , तब लोग रजा और राज्य के प्रति समर्पित थे अब क्यों नही , तब राजा प्रजा का बराबर से दयां रखता था कोई उसके लिए अलग नही था । तो सिर्फ़ इसी बात के लिए क्यों याद आई खजुराहो की मूर्तियाँ ।

वही कुछ समय पहले जिस सरकार ने इस फैसले पर असहमति दिखाई थी वही इसके साथ खड़ी दिखी , तब उसने कहा था की इससे ऐड्स के के मरीजों में वृद्धि होगी ,साथ ही उसने जाम्बिया का आकडा भी रखा था जहा ३३ प्रतिशत समलैंगिक ऐड्स का शिकार है । ऐड्स संघ ने कहा है की भारत में समलैंगिकता पर से कानूनी रोक हट जाने से सबसे अधिक फायदा ऐड्स के छेत्र में होगा लोग अब इस पर खुल के बात करेंगे । अब उनसे कौन कहे की हमारे यहं परिवार नियोजन की इतनी बड़ी समस्या है उस पर तो कोई खुल के बात नही करता तो इस पर क्या करेंगे । चाहे जो हो मै तो यही कहूँगा की हमें कोई हक नही है हम प्रकृति के नियमों के साथ खिलवाड़ करे । चलिए डाक्टर साहब आरहे है मै अपने कैमरे की तबियत पूछ लूँ और आप इस विषय पर चिंतन कीजिए और मुझे बताइए ....................