आज मेरा कैमरा मुझे कुछ जानकारी दे रहा था । वो महिला सशक्तिकरणके नुक्सान के बारे में बता रहा था । उसने मुझे बताते हुए कहा .....जनता है फैज़ ..... जब से राष्ट्रपति सर्वोच्च पद पर महिला विराजित हुई थी, तभी से आपराधिक राजनीति के जनक पुरुषों की नींद हराम हो गई थी,और अब तो संसद की स्पीकर भी महिला हो गई है । इधर पत्नी पीडित संघ ने भी इस बात पर खेद प्रकट किया था की ,पुरुषों के लिए एकाध पति का पद तो छोड़ देते ? पंचायतों ,नगरपालिकाओं में ३३%महिलाऐं बिठा रखी थी वो क्या कम थी जो संसद में भी उन्हें आराछ्द चाहिए,वो क्या कम है ? ......पतियों का यह बेहद अपमान है, वो भी पति प्रधान देश में । यहाँ महिलाएं कभी इश्वर के पद पर बैठी है ? भगवान् राम हो या एनी कोई सभी तो पति ही थे । पत्नीयां सदेव इनके चरण दबाते देखि गई है । चाहे वो महा लक्ष्मी हो या सीता । धर्म ध्वजा धारदकरने वाले साधू संत भी इन महिलाओं से प्रसन्न नही है । कल वो उनका आश्रम चलाने लगेंगी तो धर्म का पालन कैसे होगा । अतः यह फ़ैसला तो धर्म संगत हरगिज़ नही होगा ।
यदि सांसद,विधायक,मंत्री पदों पर भी पत्नियाँ बैठ गई ,तो पति क्या झाडू लगायेंगे और रोटी बेलने का कार्य करने लगेंगे । इधर राजनीती में आपराधिक गतिविधियाँ इतनी बढ़ गई है की महिलाए वहां टिक नही सकेंगी । कबूतरबाजी ,फिरौती, घूसखोरी,डकैती,बलात्कार जैसे अपराधो को कौन करेगा ? यदि ये सब अपराध बंद हो गए तो चुनाव में धन कहाँ से आएगा । चैनलों पे स्टिंग आपरेशन नही होगा तो उसे कौन देखेगा । एकाध डकैत फूलन देवी या गाद मदर को छोड़ दे तो महिलाए चुनाव लड़ने के लिए धन कहा से लायेंगी ?चुनावी फंड एकत्रीत करने के लिए खाली पुरुष ही सक्षम होता है । क्या पत्नियाँ गुजरात के सांसद बाबू भाई की तरह दुसरे के पतियों की कबूतरबाजी कर सकती है ? भारतीय पत्नियाँ तो जन्म-जन्मान्तर के लिए एक ही पति चुनने के लिए संकट सोमवार का व्रत रखती है ,और जीवन भर अपने पति की पूजा करती है । चाहे वो कितनी भी पत्नियाँ रखे । वह मारे पीते तब भी वह परमेश्वर है । क्या वो फिरौतीa का धंधा करवा सकती है ? या दुसरे के बच्चो को अगवा करवा सकती है या अगवा करवा कर उनका गला घोट सकती है ? नही .....
३३%महिलाएं यदि पार्षद ,विधायक,सांसद बन गई, तो वो थानेदारों के डंडो से पुरूषों को बचा भी नही सकती । कोई महिला नेत्री किसी अपराधी को छुड़वाने के लिए पुलिस के साथ मारपीट भी नही कर सकती तो लोग उन्हें वोट क्या देंगे । इधर पंचायतो में में जो महिलाये पञ्च, सरपंच बनकर बैठ गई है तो भी कुछ बदला नही है । आज भी वो घूंघट में में रहकर पंचायतो का काम चलती है । अपने पतियों के आदेश पर निर्दय लेकर काम करती है । वास्तव में महिलाये सशक्त नही हुई है और न कभी होंगी । आज भी वो छिनालों की तुलसियों की तरह सास-बहो छाप सीरियल देखकर घंटो सिसकती रहती है । सप्ताह में ४-५ बार उपवास रखती है । भले ही उनके पति दिन -रात दारो पीकर खात तोड़ते रहे । संसद या विधानसभा में जाकर तो वो इन्हे निर्जीव ही बना देंगी । जब वहां गालियाँ नही बाकि जाएँगी , कुर्सियां नही जाएँगी तो क्या मज़ा आएगा ? फ़िर तो संसद और विधानसभाओं में किसी प्रवचनकार साधू का मंडप ही नज़र आने लगेंगे ।
चदक्य ने भी अपने अर्थशास्त्र में लिखा है की महिलाऐं ही महिलाओं की शत्रु होती है । उनका काम राज्य करना नहीं होता अपितु विष कन्या बनकर शत्रु राजाओं का भेद लेना होता है । इससे अधिक वो कुछ भी नही कर सकती । कम से कम राज्य तो नही चला सकती है और नही राज्य के सभापतियों को संचालित कर सकती है । इसी वजह से भारत के सर्वोच्च पद पर महिला के चुने जाने पर महिला नेत्रियों ने ही जमकर विरूद्व किया था किन्तो इस बार कोई दिखा नही जो की अपवाद है । सोनिया गाँधी को प्रधानमंत्री नही बनने देने के लिए सर्वाधिक विरोध उमा भरती तथा सुषमा स्वराज ने किया था । पति पीडित संघ ने महिलाओं को उच् पद पर आसीन करने का घोर विरोध किया है । कथित स्त्री स्वातंत्र्य आन्दोलन के नाम पर, घर भर का बोझ उन्हें पहले ही उठाना पड़ रहा है । पत्नियों के सामजिक कार्यक्रमों भाग लेने की वजह से उन्हें खाना बनाना तथा बर्तन मांजने का काम पुर्व से ही करना पड़ रहा है । इधर नौकरी में अपने बोस की घुड़कियाँ खाना तो रोज़मर्रा का काम है ही । पहले राष्ट्रपति और अब लोकसभा स्पीकर के पद पर एक महिला के आरूढ़ होने के बाद ,उन्हें क्या -क्या कष्ट भोगना पड़ेगा । यह तो भगवान ही जानता है .................
मैंने अपने कैमरे से बरबस ही पूछ लिया ,यार ये बता तेरे दिमाग में ये बात आई कहाँ से । वो बोला घबराता क्यों है तेरी शादी तो अभी नही हुई है । तो जा ऐश कर ये सोचना जनहित में उनके लिए जारी है जो शादी-शुदा है । चलिए ये तो हुई मेरे कैमरे की बात ,आप बताइए मेरा कैमरा क्या सच कह रहा है ........................
5 comments:
हुसैन भाई,कुछ कहने से पहले यह सोचना और जानना जरूरी होगा की यह कैमरा कहाँ का है?:))
सच्चाई बयां कर दी आपने फैज़ साहब... पुरुषों ने इतने सालों में जो कुछ अर्जा है...ये महिलाएं किस तरह निभा पाएँगी... आखिर महिला आरक्षण का विरोध तो इसी मानसिकता की वज़ह से किया जा रहा है.
खैर ये तो रही व्यंग की बात लेकिन हकीक़त इससे ज्यादा जुदा नहीं है. हम लाख प्रगतिशील होने का ढिंढोरा पीटें लेकिन जब महिलाओं को उनका हक देने की बात आती है तो हमारे कदम पीछे हट जाते हैं.
कृपया कमेन्ट पोस्ट के आप्शन से वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें...
शुभकामनायें.
भुवन
लूज़ शंटिंग
यह व्यंग है कि सचाई -बात कुछ समझ में ना आयी .
बहुत बहुत धन्यवाद आपकी टिपण्णी के लिए!
बिल्कुल सही फ़रमाया आपने! बहुत बढ़िया लगा! आप इसी तरह लिखते रहिये और आपके अगले पोस्ट का इंतज़ार रहेगा!
I like ur style in the way u write...
Really nice...
Regards.
DevPalmistry |Lines tell the story of ur life
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