आज उस बूढे ने आपनी जिंदगी भर में ऐसा अपमान शायद आज पहली बार सहा था । वह कोई बहुत अमीर तो नही था लेकिन mehnat और स्वाभिमान की अटूट पूँजी उसके पास थी । आँखे मारे थकान के बोझिल हो गई थी । बंद होती आँखों में गुज़रा ज़माना याद आने लगा जब वह अपने बेटे को कंधे पर बिठाकर गाँव के मेले घुमाया करता था । छोटे से बच्चे को यदि पेड़ की डालपर बैठी चिडिया दिख जाती वह wah अपने पिता से पूछता था की "पिताजी वह क्या है ?"वह बताता "बेटा चिडिया है ।" वह बार बार पूछता और वह भी बार-बार मुस्कुरा कर बताता की चिडिया है । धीरे धीरे समय ने करवट ली बेटा पढ़ लिख कर अफसर बन गया और शहर में बस गया । ......हिम्मत अब जवाब देने लगी थी ,न चाहते हुए भी उसे अपने बेटे के पास शहर जाना पडा । उसे देखते ही बहू ने पैर छूकर सौभाग्यवती होने का आशीष पाना तो दूर ,बड़ा बुरा सा मुह ,बुरा तो उसे भी बहुत लगा पर ज़माने का रंग सोचकर शांत रहा ।
पर आज तो गज़ब हो गया , बेटे के दोस्तों की पार्टी चल रही थी और उसने केवल इतना ही तो पूछा था की "बेटे यह क्या है ? " और इसी "क्या है " के कारण बेटे और बहू ने उसे दरवाज़े के बाहर का रास्ता दिखला दिया .......
अब जब वो बेघर था तो साड़ी इन्द्रियां इस्तीफा दे बैठी थी और उसकी चीर्निद्रा को फुटपाथ ने अपने आँचल में सहर्ष samett लिया .......मे पूछता हूँ इस समाज से "आख़िर ये क्या है ?"
2 comments:
सही मुद्दा उठाया है. आजकल नैतिक मूल्यों और कर्तव्य का ह्रास होता जा रहा है.
आपको और आपके परिवार को दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें!
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