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Monday, November 9, 2009

"भगत सिंह होने का मतलब"


"जालिम फलक ने लाख मिटने की फ़िक्र की ,हर दिल में अक्स रह गया तस्वीर रह गई "

"मै एलान करता हूँ की मै आतंकवादी नही हूँ ,और अपने क्रन्तिकारी जीवन के आरंभिक दिनों को छोड़कर शायद कभी नही था और मै मानता हूँ की उन तरीकों से हम कुछ हासिल नही कर सकते ".......भगत सिंह का ये एलान बहुत कम ही लोग जानते होंगे । निसंदेह भगत सिंह भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के सर्वाधिक लोकप्रिय शहीदों में से एक है । हलाँकि अधिकतर उन्हें गोली चलने वाला युवा राष्ट्रवादी की रोमांटिक छवि से परे नही देख पाते थे । इसकी वजह शायद यह है की उनकी यही छवि औप्नीवेशक दौर के सरकारी दस्तावेजों में दर्ज की गई । लोग भगत सिंह को ऐसे शख्स के रूप में देखते थे , जो अपने हिंसात्मक कारनामो से ब्रिटिश शासन को आतंकित कर देता था । उनकी ज़बरदस्त हिम्मत ने उन्हें एक प्रतिमान बना दिया । भगत सिंह को आज भी प्यार और श्रधा से देखा जाता है ,लेकिन क्या हमें उनकी राजनीति और विचारों के बारे में पता है ? और क्या उनके हिंसा व आतंक में विश्वास के शुरूआती नज़रिए के बारे में पता है ?(जो मौजोदा आतंकवादी हिंसा से एकदम अलग चीज़ थी ) जिसे उन्हूने शीग्र ही एक ऐसे क्रन्तिकारी दृष्टिकोण में बदल लिया जो स्वाधीन भारत को एक धर्मनिरपेक्ष समाजवादी और समतावादी समाज में बदलने से वास्ता रखता था । भगत सिंह को जनता की तरफ़ से इस तरह का मुक्त समर्थन क्यों मिला ? जबकि उसके पास पहले से ही नायकों की कमी नही थी ? एस सवाल का जवाब देना आसान नही है । जब देश के सबसे बड़े नेताओं का तात्कालिक लक्छ्य स्वतंत्रता प्राप्ति था उस समय भगत सिंह जो बमुश्किल अपनी किशोरावस्था से बाहर आए थे ,उनके पास इस तात्कालिक लक्छ्य से परे देखने की दूर दृष्टि थी । उनका दृष्टिकोण एक वर्गविहीन समाज की स्थापना करना था और उनका अल्पकालिक जीवन इसी आदर्श को ही समर्पित रहा । भगत सिंह और उनके मित्र दो मूलभूत मुदों को लेकर सजग थे जो तात्कालिक राष्ट्रिय त्तथा अंतर्राष्ट्रीय परिपेछ्य में प्रासंगिक थे । पहला --- बढाती हुई धार्मिक व सांस्कृतिक वैमनस्यता और दूसरा समाजवादी आधार पर समाज का गठन । भगत सिंह और उनके कामरेड साथियों ने क्रांतिकारी पार्टी के प्रमुख लक्छ्यों में से एक बटोर समाजवाद लाने की ज़रुरत महसूस की ।सितम्बर १९२८ में दिल्ली स्थित फिरोज़ शाह कोटला के खण्डहरों में महत्वपुर्ण क्रांतिकारियों की बैठक में इस पर विचार विमर्श के बाद हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन ( H R A ) में सोशलिसत शब्द जोड़कर HSRA बना दिया गया । भगत सिंह अपने साथियों को यह समझाने में सक्छ्म थे की भारत की मुक्ति सिर्फ़ राजनितिक नहीं बल्कि आर्थिक आज़ादी में है। समाजवाद के प्रति उनकी प्रतिबधता ८ अप्रैल १९२९ को उनके दुआरा असेम्बली में बम्ब फेंकने की कारवाही में भी प्रकट हुई । भगत सिंह दरअसल १९२० के दौर में सम्प्रदाइकता के बड़ते खतरे के प्रति सजग हुए । उसी dashak में RSS तबलीगी जमात का उदय हुआ । उन्होंने साम्प्रदायिकतावादी प्रतिस्पर्ध को बढावा देने की नीति पर सवाल किए । एक राजनितिक विचारक के रूप में वे तब परिपक्व हुए जब वो अपनी शहादत से पहले दो साल जेल में गुजारे । उनकी जेल में लिखी डायरी पोरी स्पष्टता से उनकी राजनितिक बनावट के विकास को दिखाती है । जेल में ही उन्होंने ने अपना विक्यात लिख " मे नास्तिक क्यों हूँ " लिखा । यह लिख तार्किकता की दृढ पछ्धार्ता के साथ अंधविश्वास का पुरजोर खंडन करता है । भगत सिंह मानते थे की धर्म शोषकों के हांथो का औजार है , जिसका इस्तेमाल वो जनता में इश्वर का भय बनाये रखकर उनका शोषद करने के लिए करते है । HSRA के नेताओं का वैज्ञानिक नज़रिया समये के साथ विकसित हुआ और उनमे से अधिकतर समाजवादी आदर्श या साम्यवाद के करीब आए । वे व्यक्तिगत करावाहियों के बजाये आन्दोलनों में भरोसा रखते थे । भगत सिंह उस संघर्ष को लेकर एकदम स्पष्ट राय रखते थे , उन्होंने अपने आखिरी दिनों में कहा था की ..........

" भारत में यह संघर्ष तब तक जारी रहेगाजब तक मुट्ठी भर शोषक आम जनता के श्रम का शोषद करते रहेंगे । यह कोई मायने नही रखता की ये शोषक खालिस ब्रिटिश या भारतीय दोनों सम्मिलीत रूप से है या विशुद्ध रूप से भारतीय है ।"

तो डालिए रौशनी उनके द्बारा सोचे गए शासन के वैकल्पिक ढांचे पर , जिसमे आतंक या हिंसा नही बल्कि सामजिक और आर्थिक न्याय सर्वोपरी होगा ।

5 comments:

kishore ghildiyal said...

achha likhte hain likhte rahiye

Anonymous said...

बेहतर...
भगतसिंह की विचारों को आम मानस तक पहुंचाने की सामयिक जरूरत है...
आपने यह बख़ूबी किया है...

Urmi said...

आपने बहुत बढ़िया लिखा है ! भगत सिंह जैसे महान इंसान के विचारों को आपने बखूबी शब्दों में पिरोया है और लोगों तक पहुँचाने की कोशिश बेहतरीन रही !

काशिफ जाफरी (शायरे अहलेबैत ) said...

likhte rahiye Mr. Faiz .......

Unknown said...

congrssee kichad me aapne DESH BHAKTI k KAMAL (Lt. Shree Bhagat Singh ji) ko koun yaad karta he, aaj k bharat vasio ko LALU, RAHUL, AMARSING, MODI etc.. hi Desh Bhakt lagte he, per aap ek muslim ho kar BHAGAT ji k bare likh ker darsha diya ki aap ek Hindustani he,,, Salute Boss