Sunday, January 24, 2010
"आज तो छुट्टी है "
आज हम सब पिकनिक पर चलेंगे , हाँ पापा आज हमारे यहाँ भी छुट्टी है बस थोड़ी देर में हम सब वापस आ जायेंगे , और मै भी खाना नहीं बना रही हम सब बाहर खाना खायेंगे। यार कौन से मूवी लगी है, अरे ३ इडियट्स देखते है चल कर या फिर वीर । मम्मी देखो आज हमारे स्कूल में लड़डू बटे है क्या था आज ,चलो बेटा आज जल्दी से तैयार हो जाओ हम सब को पिकनिक पर चलना है । अरे शर्मा जी क्या कर रहे है जल्दी चलिए सिर्फ "झंडा रोहद " ही तो करना है फिर गुप्ता जी के यहाँ चल कर पते -सट्टे खेलते है। यार ऐसे छुट्टी रोज़ रोज़ आनी चाहिए सिर्फ हस्ताक्छार करके घर चले आओ तनख्वा तो मिलनी ही है ,हाँ आप ठीक कह रहे है शर्मा जी गादतन्त्र दिवस है और सभी आपनी छुट्टी के लिए दौड़-भाग रहे है । सब उनको भूल चुके है जिनकी वजह से आज वो इस छुट्टी के हकदार हुए है। क्या भारतीय सविधान में रहकर यह सब करना कही से भी एक मनुष्य को शोभा देता है । बचपन में हम किताबे पढ़ते थे उसमे जनवरी की इस हफ्ते में हर बार जंगल के गद्तान्त्र्ता दिवस के बारे में कहानिया होती थी क्या हम उससे भी सीख नहीं ले सकते , क्या हम जानवरों से भी गए-गुज़रे है । आज सभी झंडा रोहद को "सिर्फ झंडा-rohad"कहते है ,क्या हमारा यहाँ यह फ़र्ज़ नहीं बनता की हम अपनी आने वाली पीढ़ी को बताये आज के दिन का क्या महत्व है । आज के दिन हमने क्या पाया था , अगर नहीं तो सोचिये हम कहाँ खड़े है । चलिए मैतो बोलता ही रहूँगा लेकिन आज तो छुट्टी है .......
Sunday, January 17, 2010
"बुझ गया मार्क्सवाद का अंतिम चिराग"
चौबीस साल मुख्यमंत्री बने रहना आसान नहीं होता। यह नामुमकिन सा काम किया ज्योति बाबू ने। देश में सबसे पहले भूमि सुधार लागू कर करोड़ों भूमिहीनों को लाभ पहुंचाया। प्रशासन को पंचायतों तक पहुंचाया। वे भद्रलोक के भी राजा थे। प्रधानमंत्री नहीं बन सके तो यह उनकी पार्टी माकपा की भूल थी। वे अपने पीछे छोड़ गए हैं ऐसी पार्टी, जिसके पास इस ऐतिहासिक भूल पर पछताने के अलावा कुछ नहीं है।
जी हाँ छह दशक तक राजनितिक परिद्रेश्य पर छाये हुए इसनेता या कहे मार्क्सवाद के महा नायक का कल नुमोनिया केकारद निधन हो गया पूरा देश शोक में डूब गया आखिर क्यों न हो सब जानते थे की यह "ज्योति" जब तक जलेगीतब तक बंगाल का विकास होता रहेगा । कल सभी लोग दुखी थे , इस महापुरुष के बारे में बात कर रहे थे जिसनेमरने के बाद भी अपने शरीर को रीसर्च के लिए दे दिया अब उनका दह संस्कार मंगलवार को केव्दाताल शमशानघात पर किया जायेगा। सभी लोगों ने उन्हें श्रधांजलि दी , लेकिन मुझे ऐसा लगता है की सबके पास उस महापुरुषके बारे में कहने के लिए शब्दों की कमी थी, लीजिये आप भी पढ़िए किसने क्या कहा ....
बसु ने जन नेता, सक्षम प्रशासक और विशिष्ट राजनेता के रूप में अपनी काबिलियत को साबित किया। मुख्यमंत्री पद छोड़ने के बाद भी हर कोई उनसे व्यावहारिक सलाह लेना चाहता था। - प्रतिभा पाटिल, राष्ट्रपति
बसु को पश्चिम बंगाल के लोग दूरगामी भूमि सुधार के जरिए ग्रामीण क्षेत्र की सूरत बदल देने वाले राजनेता के रूप में याद रखेंगे। उन्हें विकेंद्रीकृत शासन व्यवस्था के लिए भी याद रखा जाएगा। - मनमोहन सिंह, प्रधानमंत्री
बसु एक महान नेता थे। उन्होंने लंबे समय तक पश्चिम बंगाल में माकपा के गढ़ को मजबूती से संभाले रखा। विचारधाराएं अलग होने के बावजूद उनकी महानता के कारण मैं उनका सम्मान करता हूं। - लालकृष्ण आडवाणी, नेता,भाजपा
संभवत: समकालीन राजनीति में उनके जैसी करिश्माई हस्ती कोई और नहीं है। वास्तव में वह पहली संप्रग सरकार के शिल्पकार थे जिसे वाम दलों ने बाहर से समर्थन दिया। - प्रणव मुखर्जी, वित्त मंत्री
बसु के निधन से वामपंथी और लोकतांत्रिक आंदोलन को करारा झटका लगा है। पूरे देश में वाम और लोकतांत्रिक आंदोलन को विस्तार देने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। - बुद्धदेव भट्टाचार्य, मुख्यमंत्री, प. बंगाल
वह कद्दावर राजनीतिक शख्सियत थे। पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चे की सरकार के गठन में उन्हीं की भूमिका थी। वह वाम मोर्चा सरकार और वाम आंदोलन का पहला और आखिरी अध्याय थे। - ममता बनर्जी, रेल मंत्री
उनके निधन के साथ एक युग का अंत हो गया। उनकी जगह शायद ही कोई भर पाए।
प्रकाश करात, माकपा महासचिव
उनसे मुलाकात के पल मेरी स्मृति में हमेशा रहेंगे।
सोनिया गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष
सोचिये क्या उस महापुरुष के लिए ये शब्द काफी है ...नहीं तो फिर सोचिये की हमसे गलती कहाँ हुई है । हम ब्लॉगजगत की तरफ से "ज्योतिदा" को अपनी श्रधांजलि पेश करते है .......
जी हाँ छह दशक तक राजनितिक परिद्रेश्य पर छाये हुए इसनेता या कहे मार्क्सवाद के महा नायक का कल नुमोनिया केकारद निधन हो गया पूरा देश शोक में डूब गया आखिर क्यों न हो सब जानते थे की यह "ज्योति" जब तक जलेगीतब तक बंगाल का विकास होता रहेगा । कल सभी लोग दुखी थे , इस महापुरुष के बारे में बात कर रहे थे जिसनेमरने के बाद भी अपने शरीर को रीसर्च के लिए दे दिया अब उनका दह संस्कार मंगलवार को केव्दाताल शमशानघात पर किया जायेगा। सभी लोगों ने उन्हें श्रधांजलि दी , लेकिन मुझे ऐसा लगता है की सबके पास उस महापुरुषके बारे में कहने के लिए शब्दों की कमी थी, लीजिये आप भी पढ़िए किसने क्या कहा ....
बसु ने जन नेता, सक्षम प्रशासक और विशिष्ट राजनेता के रूप में अपनी काबिलियत को साबित किया। मुख्यमंत्री पद छोड़ने के बाद भी हर कोई उनसे व्यावहारिक सलाह लेना चाहता था। - प्रतिभा पाटिल, राष्ट्रपति
बसु को पश्चिम बंगाल के लोग दूरगामी भूमि सुधार के जरिए ग्रामीण क्षेत्र की सूरत बदल देने वाले राजनेता के रूप में याद रखेंगे। उन्हें विकेंद्रीकृत शासन व्यवस्था के लिए भी याद रखा जाएगा। - मनमोहन सिंह, प्रधानमंत्री
बसु एक महान नेता थे। उन्होंने लंबे समय तक पश्चिम बंगाल में माकपा के गढ़ को मजबूती से संभाले रखा। विचारधाराएं अलग होने के बावजूद उनकी महानता के कारण मैं उनका सम्मान करता हूं। - लालकृष्ण आडवाणी, नेता,भाजपा
संभवत: समकालीन राजनीति में उनके जैसी करिश्माई हस्ती कोई और नहीं है। वास्तव में वह पहली संप्रग सरकार के शिल्पकार थे जिसे वाम दलों ने बाहर से समर्थन दिया। - प्रणव मुखर्जी, वित्त मंत्री
बसु के निधन से वामपंथी और लोकतांत्रिक आंदोलन को करारा झटका लगा है। पूरे देश में वाम और लोकतांत्रिक आंदोलन को विस्तार देने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। - बुद्धदेव भट्टाचार्य, मुख्यमंत्री, प. बंगाल
वह कद्दावर राजनीतिक शख्सियत थे। पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चे की सरकार के गठन में उन्हीं की भूमिका थी। वह वाम मोर्चा सरकार और वाम आंदोलन का पहला और आखिरी अध्याय थे। - ममता बनर्जी, रेल मंत्री
उनके निधन के साथ एक युग का अंत हो गया। उनकी जगह शायद ही कोई भर पाए।
प्रकाश करात, माकपा महासचिव
उनसे मुलाकात के पल मेरी स्मृति में हमेशा रहेंगे।
सोनिया गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष
सोचिये क्या उस महापुरुष के लिए ये शब्द काफी है ...नहीं तो फिर सोचिये की हमसे गलती कहाँ हुई है । हम ब्लॉगजगत की तरफ से "ज्योतिदा" को अपनी श्रधांजलि पेश करते है .......
Saturday, January 16, 2010
"हेती को बचा लो "
उत्तरी अमेरिकी महाद्वीप के कैरेबियाई क्षेत्र के एक छोटे से देश हेती की राजधानी पोर्ट ऑफ प्रिंस गत 13 जनवरी की शाम 4 बजकर 53 मिनट पर उस समय प्रकृति की महाविनाश लीला का एक बहुत बड़ा केंद्र बन गई जबकि इस क्षेत्र को 7.3 क्षमता के भयानक भूकंप का सामना करना पड़ा। चीन में आए विश्व के अब तक के सबसे तीव्र एवं हानिकारक भूकंप के बाद हेती का यह भूकंप अब तक का दूसरा सबसे भयानक, तीव्र एवं सर्वाधिक क्षति पहुंचाने वाला भूकंप माना जा रहा है।
हेती की राजधानी पोर्ट ऑ प्रिंस से मात्र २ किलोमीटर की दूरी पर अपना केंद्र बनाने वाले इस महाविनाशकारी भूकंप की गहराई का केंद्र मात्र 13 किलोमीटर पृथ्वी के भीतर बताया जा रहा है। हेती के अतिरिक्त कैरिबियाई देशों में क्यूबा, बहामास तथा डोमिनिक रिपब्लिक जैसे देश शामिल हैं। ज्ञातव्य है कि चीन में आए भूकंप से अब तक की विश्व की सबसे अधिक क्षति हुई मानी जाती रही है। इसमें एक अनुमान के अनुसार लगभग साढ़े आठ लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हुई थी। हेती में आए वर्तमान भूकंप में हालांकि मृतकों की संख्या का अभी स्पष्ट अंदाजा नहीं हो पा रहा है। क्योंकि लगभग पूरी राजधानी खण्डहर में तब्दील हो चुकी है। आम लोगों के घरों, कार्यालयों अथवा भवनों की तो बात क्या करनी वहां के सबसे मजबूत समझे जाने वाले संसद भवन तथा संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्यालय,अस्पताल,अगि्नशमन केंद्र जैसी इमारतें सभी तबाह हो गई हैं। लाखों लोगों के इन मलवों के तले दबे होने की आशंका है। फिर भी शुरुआती सूचनाओं के अनुसार 50,000 से लेकर 1 लाख तक लोग मौत के शिकार हो चुके हैं। अंदाजा लगाया जा रहा है कि मलवा साफ होने के बाद मृतकों की संख्या 4 से 5 लाख तक या इससे भी अधिक हो सकती है।हम कह सकते है की एक बार फिर प्रकृति के सामने बौना साबित हुआ है विज्ञान सन् 2005 में आए सुनामी जैसे विनाशकारी समुद्री तूफान के बाद एक बार विश्व के वैज्ञानिक अपनी आंखे खोलते नजर आए थे। कुछ समय के लिए उस वक्त यह हलचल सुनाई दी थी कि सुनामी तथा भूकंप जैसी प्राकृतिक विपदाओं की पूर्व सूचना प्राप्त करने हेतु वैज्ञानिक पूरी गंभीरता व सक्रियता से कार्य करेंगे। परंतु लगता है ब्रह्माण्ड,चंद्रमा, मंगल ग्रह तथा आकाश गंगा जैसी अति दूरस्थ एवं रहस्यमयी समझी जाने वाली चीजों पर अपनी मजबूत पकड़ प्रदर्शित करने वाली तथा पूरे आत्मविश्वास के साथ इनके विषय में नित्य नवीनतम जानकारियां देने वाली विज्ञान भूगर्भ विज्ञान के क्षेत्र में ही असफल दिखाई दे रही है। अलबत्ता भूकंप आने के बाद यही विज्ञान इस स्थिति में अवश्य पहुंच जाती है जोकि यह बता सके कि भूकंप की तीव्रता क्या थी,भूकंप का केंद्र किस जगह स्थित था तथा धरती की कितनी गहराई में किस फाल्ट के चलते यह भूकंप आया है। परंतु हमारे वैज्ञानिक इनकी पूर्व जानकारी दे पाने में अभी तक पूरी तरह से नाकाम हैं।
आखिर कब हम बचा पाएंगे अपनों को .....!!!!!
Tuesday, January 12, 2010
"नदियाँ कराह रही है"
आप सभी को नूतन वर्ष की शुभकामनाये। वर्ष का शुभारम्भ हो चुका है, सभी लोगों ने इसका स्वागत अपने तरीके से किया । किसी ने पार्टी दी ,किसी ने आतिशबाजी की ,कोई आज तक नहीं उठा ,प्रकृति ने भरी ठण्ड और कोहरे से नए वर्ष का स्वागत किया । साथी ही चन्द्र ग्रहण और अब १५ तारिख को सदी का सबसे लम्बा सूर्य ग्रहण .......
हैं न सब कमाल की बात ॥नव वर्ष के आगमन की रात लोगोने जमकर बिमारियों को बुलावा दिया आप सोच रहे होंगे की मै क्या कह रहा हूँ लेकिन ये सच है, जब चरों तरफ धुआं ही धुआं था तो कुछ लोग खांस रहे थे शायद उनका लीवर उस को बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था । ......उसी रात मेरा कैमरा भी बीमार पड़ गया मैंने उसे डोक्टर को दिखाया तो वो कहने लगे की दूषित वायू और दूषित पानी पिने से ये बीमार पड़ गया है । मैंने डाक्टर साहब से पूछा की आखिर उससे बचने का उपाय क्या है ,तो वो बोले चारों तरफ लोग अपने स्वार्थ के लिए पेड़ पौधों को काट रहे है नदियों को दूषित कर रहे है ,जिसकी वजह से लोगों में ये सारी बीमारियाँ बढ रही है। इनसे बचने के लिए हमें कम से कम एक पौधा हर वर्ष लगाना चाहिए ,साथ ही नदियों में होने वाले प्रदूषद को रोकना चाहिए ।
चलिए ये तो डाक्टर साहब की बात हो गयी लेकिन जहाँ लाखों का मजमा होगा वहां इस बात पर कौन ध्यान देगा की नदियों को प्रदूषद से बचाना है । मै हरिद्वार में शुरू हो रहे कुम्भ और इलाहाबाद के माघ मेले की बात कर रहा हूँ लोग अब जल के लिए प्लास्टिक के गैलन और शीशी का इस्तेमाल करेंगे ,नदी के पानी में ही अपने कपडे धोयेंगे ,बर्तन मान्जेंगे । रोज़ कई टन गन्दगी पवित्र जल में प्रवाहित होगी और उस पवित्र जल को अपवित्र करेगी ।
क्या आज भी आप के घर में गन्गा जल जब प्लास्टिक की शीशी में ले जाते है तो घर के बड़े बुजुर्ग नाराज़ नहीं होते । क्यों पुराने ज़माने में लोग ताम्बे के पात्रों का इस्तेमाल करते थे जल को रखने के लिए क्योंकि ताम्बे के अंदर वो तत्व मौजूद है जो जल को शुद्ध करता है । क्या आप के घर में आज भी गंगा जल रखने के लिए ताम्बे का पात्र नहीं है ? है ,तो फिर क्यों हम इस्तेमाल करे "शीशी" का ।
मै किसी की भावनाओ को ठेस नहीं पहूचाना चाहता ,लेकिन सोचिये .....
आएये इस नूतन वर्ष में एक संकल्प करे की अपने और अपने देश के लिए एक पौधा अवश्य लगायेंगे और पवित्र नदियों को प्रदूषद मुक्त करने के लिए जी जान लगा देंगे ।प्लास्टिक का उपयोग कम से कम करेंगे ............
हैं न सब कमाल की बात ॥नव वर्ष के आगमन की रात लोगोने जमकर बिमारियों को बुलावा दिया आप सोच रहे होंगे की मै क्या कह रहा हूँ लेकिन ये सच है, जब चरों तरफ धुआं ही धुआं था तो कुछ लोग खांस रहे थे शायद उनका लीवर उस को बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था । ......उसी रात मेरा कैमरा भी बीमार पड़ गया मैंने उसे डोक्टर को दिखाया तो वो कहने लगे की दूषित वायू और दूषित पानी पिने से ये बीमार पड़ गया है । मैंने डाक्टर साहब से पूछा की आखिर उससे बचने का उपाय क्या है ,तो वो बोले चारों तरफ लोग अपने स्वार्थ के लिए पेड़ पौधों को काट रहे है नदियों को दूषित कर रहे है ,जिसकी वजह से लोगों में ये सारी बीमारियाँ बढ रही है। इनसे बचने के लिए हमें कम से कम एक पौधा हर वर्ष लगाना चाहिए ,साथ ही नदियों में होने वाले प्रदूषद को रोकना चाहिए ।
चलिए ये तो डाक्टर साहब की बात हो गयी लेकिन जहाँ लाखों का मजमा होगा वहां इस बात पर कौन ध्यान देगा की नदियों को प्रदूषद से बचाना है । मै हरिद्वार में शुरू हो रहे कुम्भ और इलाहाबाद के माघ मेले की बात कर रहा हूँ लोग अब जल के लिए प्लास्टिक के गैलन और शीशी का इस्तेमाल करेंगे ,नदी के पानी में ही अपने कपडे धोयेंगे ,बर्तन मान्जेंगे । रोज़ कई टन गन्दगी पवित्र जल में प्रवाहित होगी और उस पवित्र जल को अपवित्र करेगी ।
क्या आज भी आप के घर में गन्गा जल जब प्लास्टिक की शीशी में ले जाते है तो घर के बड़े बुजुर्ग नाराज़ नहीं होते । क्यों पुराने ज़माने में लोग ताम्बे के पात्रों का इस्तेमाल करते थे जल को रखने के लिए क्योंकि ताम्बे के अंदर वो तत्व मौजूद है जो जल को शुद्ध करता है । क्या आप के घर में आज भी गंगा जल रखने के लिए ताम्बे का पात्र नहीं है ? है ,तो फिर क्यों हम इस्तेमाल करे "शीशी" का ।
मै किसी की भावनाओ को ठेस नहीं पहूचाना चाहता ,लेकिन सोचिये .....
आएये इस नूतन वर्ष में एक संकल्प करे की अपने और अपने देश के लिए एक पौधा अवश्य लगायेंगे और पवित्र नदियों को प्रदूषद मुक्त करने के लिए जी जान लगा देंगे ।प्लास्टिक का उपयोग कम से कम करेंगे ............
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