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Wednesday, May 19, 2010

"राहुल-विकास-कांग्रेस"

"हमें जातिगत या एक समुदाय विशेष को लेकर ये लड़ाई नहीं जितनी है हमें सबको साथ लेकर चलना है " ये वाक्य है कांग्रेस पार्टी के युवराज राहुल गाँधी का जो कल अहरौरा जो की तिन जिलो की त्रिशंकु सीमा पर स्थित है । लोगों ने अपने उस युवराज के लिए पलक पावडे बिछाये थे तो सर्कार ने सुरछा का जल बिछाया था ।

मेरे कैमरे ने जब कल आ कर ये सब बाते बताई तो मई भी प्रफुल्लित हो गया । उसने आगे बताया की लोग आपस में बाते कर रहे थी की " अरे इ तो राजीव बाबु जैसन बाटे " लोग उनके इंतज़ार में ४५ डिग्री तापमान में भी पंडाल में बैठे रहे । जब राहुल गाँधी आये तो लोगों ने उनका अभिवादन हर हर महादेव का नारा लगा कर किया जवाब में राहुल बाबा ने भी हाँथ हिलाकर उनका अभिवादन का जवाब दिया ।

जब वो मंच पर चड़े तो बिना कुछ कहे अपने १२ मिनट के भाषण में सब कुछ कहा सिवाए नक्सल वाद के ,वो इस मसले पर चुप्पी मर गए इस से शायद पूरा मीडिया समाज उदास हुआ होगा उसे कोई "मसाला"जो नहीं मिला ।

सब तरफ सिर्फ विकास में निचले पायदान पर चल रहे उत्तर प्रदेश की चर्चा थी सभी ने इसी बारे में बात कही की प्रदेश सरकार केंद्र की नीतियों को सही से चला नहीं पा रही है । खैर भगवन बचाए इस सरकार से मेरे यहाँ विधुत भी चली गयी है और मई पसीने में नहा कर नहीं लिख पाऊँगा अब नहीं लिखा जायेगा मुझसे .....अगली पोस्ट के लिए अलविदा .

Monday, May 17, 2010

"नक्सलियों का लाल सलाम "

यार फैज़ देखा दंतेवाडा में एक बार फिर खून की होली खिली नक्सलियों ने , पर फिर भी आँखे नहीं खुलेगी सरकार की , कोई समुचित उपाय नहीं किया जायेगा बस कुछ दिनों तक ओछी राजनीती होगी इस मुद्दे पर और फिर सबकुछ शांतकुछ दिनों के बड फिर होगा कोई बड़ा नक्सली हादसा और फिर निकल आएगा बोतल में से जिनबाहर
आखिर इन सब चीजों से नुक्सान किसका है मेरा कैमरा जो कह रहा है क्या उस पर दयां नहीं देना चाहिए आखिरमर कौन रहा है , बेगुनाह जनता ही लेकिन कौन समझाए इन्हें ये तो सिर्फ सहायता राशी देकर अपना पिंडछुड़ाने की जुगत में लगे रहते है की कितना अधिक दे कर अपना दामन साफ़ कर ले।
कोई उनसे जा कर पूछे जिन्हूने अपना सुहाग अपना पिता अपना बेटा खोया है उनके दिल पर क्या गुज़रती है क्याचाँद कागज़ टुकड़े उनका दर्द कम कर देंगे नहीं ???

तो फिर क्यों नहीं नक्सलियों के बारे में कुछ नहीं सोचा जाता क्या जवाहर लाल नेहरु ने आदिवासियों के लिए जोयोजनायेशुरू की थी जिनमे रिहंद बाँध भी था क्या वो उससे संतुष्ट नहीं हैक्या उन्हें कुछ और चाहिए लेकिनविपदा ये है की कौन पूछे उनसे सब तो डरते है हम क्यों ऐसे लोगों को पदासीन करते है जो डरपोक होते है सिर्फ़ पैसा कमाने के लिए कुर्सी पर बैठते है नाकि आम जनता के बारे में सोचने के लिए ......

क्या होगा आने वाले वक़्त में हमारे देश का सोचिये वरना हर हिन्दुस्तानी नक्सलियों की रह पर चल पड़ेगा .......