अरे कैमरे तो इतना दुखी क्यों है आखिर क्या हुआ ....तुझे साप ने कटा है क्या । नहीं भाई फैज़ मुझे तो हमरे देश के समझदार मलाईदार नेतूने कटा है आज मैटीवी पर उनकी नौटंकी देखकर दांग रह गया है जिस देश में गरीब को दो वक्त की रोटियां भी बमुश्किल नसीब होती हैं वहां पर उन्हीं गरीबों के नुमाइंदों ने सैलरी में 200 पर्सेंट की वृद्धि होने के बावजूद संसद में शुक्रवार को जमकर हंगामा मचाया। सासदों के आचरण को देखते हुए सदन की कार्यवाही तक ठप करनी पड़ी। मौखिक रूप से सांसदों ने अलग से संसद का गठन किया। स्पीकर की भूमिका में बीजेपी के गोपीनाथ मुंडे दिखे तो लालू प्रसाद यादव कुछ ही पलों के लिए स्वघोषित प्रधानमंत्री बने नजर आए। अब सवाल यह पैदा होता है कि क्या सचमुच नेताओं की सैलरी बढ़ाने की जरूरत है। आइए जरा नजर डालते हैं नेताओं की बढ़ी हुई सैलरी और उनको मिलने वाली सुविधाओं पर :-
बेसिक पे पहले
16 हजार रुपये
बेसिक पे अब
50 हजार रुपये
संसदीय क्षेत्र भत्ता पहले
20 हजार रुपये
संसदीय क्षेत्र भत्ता अब
40 हजार रुपये
गाड़ियों के लिए रोड माइलेज रेट पहले
13 रुपये / किलोमीटर
गाड़ियों के लिए रोड माइलेज रेट अब
16 रुपये / किलोमीटर
पेंशन पहले
8 हजार रु. महीना
पेंशन अब
20 हजार रु. महीना
इतना ही नहीं सांसदों को सलाना डेढ़ लाख फ्री फोन कॉल्स करने की सुविधा है जिसके लिए उन्हें तीन लैंडलाइन और दो मोबाइल फोन मिले हैं। सांसदों के लिए एक साल में 34 हवाई यात्राएं भी मुफ्त हैं जिसकी कीमत पांच लाख रुपये के आसपास है। सांसदों के पति या पत्नी लिए भी सुविधाओं की कमी नहीं है। सांसदों की पत्नी या पति के लिए असीमित प्रथम श्रेणी की रेल यात्रा भी फ्री है। साथ ही, फ्री आवास सुविधा, फ्री फर्नीचर जिसके लिए सरकार 60 हजार रुपये प्रति महीना किराया पे करती है। अतिरिक्त सामान के लिए 15 हजार रुपये प्रति महीना किराया पे किया जाता है। इतना ही नहीं सांसदों के सोफा कवर्स, पर्दे, बाथरुम की सफाई भी मुफ्त ही होती है। सांसदों के लिए एक साल में पचास हजार यूनिट बिजली जलाने की सुविधा और चार हजार किलोलीटर मुफ्त पानी भी है। कुल मिलाकर हमारे सांसदों को 37 लाख रुपये सलाना मिलते हैं। क्या इन्हें और की जरूरत है ? (नवभारत टेम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार)
अब तो ही बता देश की जनता भूकी नहीं मारेगी तो क्या होगा देश का किसान आत्महत्या नहीं करेगा तो क्या करेगा । जिस सरकार के पास ओचित भाव से किसानो का अनाज खरीदने के लिए धन नहीं है वो इन जनता के इन नुमैन्दो ,जो की जनता की आवाज़ उठाने के लिए उस पवित्र घर में मौजूद है , को कहाँ से इतना पैसा देगी ..और ये मूह फाड़ फाड़ कर जनता के हित की बात करने वाले नेताओं को उस वक़्त क्या हुआ था सब के सब एक सुर में राग अआलाप रहे थे की हमें और पैसा चाहिए शर्म आती है मुझे ये सब कहते हुए.........
हाँ बड़ी विडम्बना है ये देश की चल तुने तो सोचा पर बाकि सब नै सोचते चल उठ जा कम पर चलते है और आप भी जाइये वरना बॉस की दन्त .बीवी की मार , बेवजह की परेशानी ,क्या फायदा ये सब झेलना पड़ेगा ......