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Sunday, September 13, 2009

अब तेंदुओं की बारी .............

क्या भा फैज़ कहाँ थे आज कल कोई नई पोस्ट नही आ रही थी तुम्हारी कहाँ थे तुम ? अरे कही नही यार रमजान चल रहा है न मौका नही मिल रहा था । जनता है फैज़ आज कल लोग शेर के साथ साथ तेंदुओं को भी नही छोड़ रहे है । वन्यजीव पर काम कर रही गै़र सरकारी संस्था 'वाइल्डलाइफ़ प्रोटेक्शन सोसाइटी आफ़ इंडिया' के अनुसार इस साल के शुरुआती दो महीनों में ७२ तेंदुए मारे जा चुके हैं । वाइल्ड लाइफ़ प्रोटेक्शन ऑफ़ इंडिया के मुताबिक़ तेंदुओं की सबसे ज़्यादा मौत झारखंड राज्य में हुई है । यहाँ २१ तेंदुए मारे जा चुके हैं। झारखंड एक ऐसा राज्य है जहाँ तेंदुओं की संख्या सबसे ज़्यादा है । कर्नाटक में ११ तेंदुए मारे जा चुके हैं जबकि हिमाचल प्रदेश में नौ तेंदुए मारे गए हैं। हालांकि ये संस्था इन मौतों का अलग अलग कारण बताती है ।


वाइल्ड लाइफ़ प्रोटेक्शन सोसाइटी आफ़ इंडिया की निदेशक बलिडा बताती हैं, " तेंदुओं को ज़हर दिया जाना, सड़क दुर्घटना, बदले की भावना के तहत कार्रवाई, शिकार, बिजली का करंट और जानवरों और मनुष्य के बीच संघर्ष इनकी मौत के मुख्य कारण हैं।" बलिडा तेंदुओं की घटती संख्या के लिए ग़ैरक़ानूनी शिकार को मुख्य कारण नहीं मानती हैं ।
पर्वतीय क्षेत्रों में रह रहे लोग तेंदुओं को नहीं चाहते क्योंकि लोग उनसे डरते हैं। तेंदुए गांव मे शिकार की तलाश में आते हैं क्योंकि जंगल में उन्हें अपना शिकार नहीं मिलता ।
रिपोर्ट के मुताबिक़ इस महीने की शुरुआत में तेंदुओं की साढे़ चार किलो हड्डियां और ३३ खालें बरामद की गईं और ३९ तेंदुए अलग अलग परिस्थितियो में मृत पाये गए.
शिकार के मामलों पर रिपोर्ट बताती है कि वर्ष २००८ में १६१ तेंदुओं का शिकार किया गया और १९९९ से २००८ तक ३१८९ चीतों का शिकार किया गया ।

भारत में वन्य जीवों का शिकार करना अवैध है फिर भी रोज़ यहाँ कई वन्य जीवों का शिकार होता जोकि एक भयंकर समस्या है । यहाँ वन्य जीवों का व्यापार अवैध हैं । तेंदुए के अंगों का इस्तेमाल दवाओं के लिए किया जाता है जिनकी की़मत बहुत ज़्यादा होती है ।
इनकी हड्डियों को बाघों की हड्डियों के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है । साथ ही इनकी खोपडी़ और पंजों की भी मांग काफी़ होती है । चीन और दक्षिण पूर्व एशियाई देश इनके अवैध व्यापार के बडे़ केंद्र हैं । चीन ही नहीं अमरीका, जापान और जर्मनी तक अवैध व्यापार हो रहा है । नशीली दवाओं और हथियारों के बाद वन्य जीवों की तस्करी दुनिया का तीसरा बडा़ अवैध व्यापार है ।


आंकड़ों पर नज़र डालें तो २००८ में ११ हज़ार चीते थे। बाघों की बात की जाए तो इस दौरान लगभग १४११ बाघ जीवित थे । वन्य जीव विशेषज्ञों के अनुसार तेंदुओं की हत्या की दर बाघों से कहीं ज़्यादा है। बाघों की घटती संख्या को स्वीकारते हुए सरकार ने आयोग का गठन भी किया था। लेकिन तेंदुओं की घटती संख्या पर अभी तक सरकार का ध्यान नहीं गया है । वन्यजीव पर काम करने वाले जानकारों का कहना है कि वे केवल समस्या को उठा सकते हैं लेकिन कार्रवाई की पहल तो सरकार को करनी होगी क्योंकि ये सवाल जंगल, जानवर और मनुष्य के बीच पैदा हुई खाई को पाटने का भी है।

तो अब तुम बताओ फैज़ क्या होगा समाज का जब शेर और तेंदुओं को इंसान नही बख्श रहा है तो कल क्या वो अपने जैसे इंसानों के अपने फायदे की स्थिति में बक्शेगा .....सोचिये .........

1 comment:

Urmi said...

वाह बहुत अच्छा लगा पढ़कर ! इस बेहतरीन कहानी के लिए बधाई !