अरे कैमरे ये तस्वीरे कहाँ की है ???? ये है अपने यहाँ से ७० किलोमीटर दूर स्थित पूर्वांचल यूनिवर्सिटी की है , जो की एक बहुत बड़ी विद्या- संस्था है । ये बच्चे उसी के गलियारों में कूड़ा बीन रहे है। .....तुने गौर से नही देखा फैज़ इनकी पीठ पर बसते भी है, जो हमारी शिक्छा प्रणाली को मुह चिढा रहे है । ...काफी गम्भीर मुद्दा है ये की आज जिस जगह से लाखों बच्चे हर साल पढ़कर उचे-उचे पदों पर आसीन होते है उसी जगह ये प्रैम्रिय पाठशाला के बच्चे मैक्रोबायो लैब के पीछे से कचरा उठा रहे है । मेरे कैमरे ने इनसे बात करनी चाहि तो ये वहाँ से भाग गए लेकिन एक छात्रा जिसका नाम पूनम था उसने बताया की "हम यहाँ से प्लास्टिक का सामान बीन कर ले जाते है और कबाड़ी को बेचकर पैसे ले लेते है । " क्या हमारे गाँव की स्थति इतनी ख़राब है की वहां के पढने वाले छात्रों को अपनी जीवीका चलाने के लिए कूड़ा बीनना पड़ता है। मै आगे कुछ नही लिख सकता आप तस्वीरों में से इसकी भयावता को देख व समझ सकते है ................
2 comments:
" क्या हमारे गाँव की स्थति इतनी ख़राब है की वहां के पढने वाले छात्रों को अपनी जीवीका चलाने के लिए कूड़ा बीनना पड़ता है।
aapka cemra to shayad yahi kah raha hai
wah babuji wah kya tasveere hamare naunihalo ki badhali ke lage raho
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