फिलहाल मै काशी नगरी में हूँ और आप को यहाँ की होली अपने कैमरे की नज़र से अवश्य दिखने की कोशिश करूंगा और अंत में एक बार फिर आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाये ................
Sunday, February 28, 2010
'होली है होली"
ब्लॉग जगत के सभी ब्लोगर को मेरी और मेरे कैमरे की तरफ से रंगों के इस त्यौहार की हार्दिक शुभकामनाये । आप सभी को रंगों के इस त्यौहार पर नए समाचार की प्राप्ति हो जिससे आप का जीवन पुलकित हो जाए । आप सभी से एक विनम्र निवेदन है की कम से कम सिंथैटिक रंगों का प्रयोग करे प्राकृतिक रंगी का इस्तेमाल करे, पानी का कम से कम दुरुपयोग करे । त्यौहार को भारतीय संस्कृति के दायरे में हंसी ख़ुशी मनाये ताकि किसी को ठेस न पहुंचे । हाँ और मित्रों को गुजिया ज़रूर खिलाये । कृपया नशे में आकर किसी से अभद्रता न करे , भांग और ठंडे का सेवन सिर्फ मज़े के लिए करे नाकि उम्र भर की सजा के लिए । हूँ तो मै बहुत छोटो सो मेरे मुख से ये बाते शोभा नहीं देती पर बुरा मनो होली है ........
Wednesday, February 24, 2010
बजट खुल गया
यार फैज़ ये "बजट" शब्द कहाँ से आया मेरा कैमरा अपने आँखे साफ़ करता हुआ बोला ,
"बजट" शब्द कैसे प्रचलन में आया इसकी एक रोचक कहानी है। दरअसल इंग्लैण्ड कई मामलों में फ़्रांस से प्रेरणा लेता रहा है और फ़्रांस की भाषा फ्रेंच में "बूजेत " का अर्थ है चमड़े का झोला । सन १७३३ इसवी में ब्रिटिश संसद में वित्तीय प्रस्तावों से संभंधित दस्तावेजों को एक चमड़े के थैले में भरकर वित्तमंत्री"राबर्ट वाल पोल" सदन में आये और उन्हूने अपने सचिव से वह थैला खोलने को कहा । दुसरे दिन आर्थिक समीछा करते हुए अखबार में एक लिख प्रकाशित हुआ जिसका शीर्षक था - "बजट खुल गया " और उसी चमड़े के थैले के नाम से "बजट" शब्द के सम्भोधन की शुरुआत हुई जो धीरे धीरे भारत सहित सभी ब्रिटिश उपनिवेशों में प्रचलन में आ गया ।
भारत में "बजट प्रणाली" की शुरुआत का श्रेयपराधीन भारत के पहले वायसराय "लार्ड कैनिंग" को जाता है । वायसराय की परिषद् में ब्रिटिश तर्ज पर पहली बार भारत का बजट १८ फरवरी १८६० को प्रस्तुत किया गया था । इसके बाद प्रतिवर्ष फरवरी माह में भारत का बजट पेश किया जाता है । सन १९२१ में रेल बजट को सामान्य बजट से अलग कर दिया गया ।
"बजट" शब्द कैसे प्रचलन में आया इसकी एक रोचक कहानी है। दरअसल इंग्लैण्ड कई मामलों में फ़्रांस से प्रेरणा लेता रहा है और फ़्रांस की भाषा फ्रेंच में "बूजेत " का अर्थ है चमड़े का झोला । सन १७३३ इसवी में ब्रिटिश संसद में वित्तीय प्रस्तावों से संभंधित दस्तावेजों को एक चमड़े के थैले में भरकर वित्तमंत्री"राबर्ट वाल पोल" सदन में आये और उन्हूने अपने सचिव से वह थैला खोलने को कहा । दुसरे दिन आर्थिक समीछा करते हुए अखबार में एक लिख प्रकाशित हुआ जिसका शीर्षक था - "बजट खुल गया " और उसी चमड़े के थैले के नाम से "बजट" शब्द के सम्भोधन की शुरुआत हुई जो धीरे धीरे भारत सहित सभी ब्रिटिश उपनिवेशों में प्रचलन में आ गया ।
भारत में "बजट प्रणाली" की शुरुआत का श्रेयपराधीन भारत के पहले वायसराय "लार्ड कैनिंग" को जाता है । वायसराय की परिषद् में ब्रिटिश तर्ज पर पहली बार भारत का बजट १८ फरवरी १८६० को प्रस्तुत किया गया था । इसके बाद प्रतिवर्ष फरवरी माह में भारत का बजट पेश किया जाता है । सन १९२१ में रेल बजट को सामान्य बजट से अलग कर दिया गया ।
Monday, February 1, 2010
"मनसे" गुंडागर्दी
अरे यार फैज़ अब मै क्या करूंगा, क्यों क्या हुआ ? होना क्या था अब "मनसे गुंडागर्दी " करने वालों का उत्तर भारतियों के लिए एक नया तुगलकी फरमान आया है की सभी टैक्सी चालकों को लाइसेंस के लिए मराठी बोलना ज़रूरी होगा वरना उन्हें टैक्सी नहीं चलने दी जाएगी । .........
बेशक आप सभी इन घटनाओ को सिर्फ समाचार की तरह पढ़ रहे है लेकिन ज़रा सोचिये भारतीय सविधान को कितना अपमानित होना पद रहा है । जब इसी तरह "सिमी" ने सर बुलंद किया था तो भारतीय सविधान के चाबुक ने उसका सर कुचल दिया और कहा भारत में सभी को हर जगह रहने और काम करने की आज़ादी है , तो फिर अब क्यों चुप है गृह मंत्रालय क्यों नहीं महाराष्ट्र नव निर्माण सेना पर "मनसे" पाबंदी लगायी जाती । क्या यह व्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन नहीं हो रहा है । अब जब सचिन जैसे देश के अनमोल रत्न ने जब ये कहा की मुंबई सभी भारतियों की है तो उनसे कहा गया की आप खेल पर ध्यान दे नाकि सियासत में । शारूख खान को तो पकिस्तान जाने तक का फरमान सुना दिया है इन्हूने "मनसे"। जिस प्रकार से ये कथित गुंडे उतार भारतियों पर कहर बनकर टूट रहे है क्या उससे भी राष्ट्रपति महोदया या किसी ज़िम्मेदार नागरिक को ये अपील या फैसला करते नहीं सुना की इस गुंडागर्दी पर लगाम कासी जाए , क्यों न महाराष्ट्र नव निर्माण सेना को प्रतिबंधित कर दिया जाए । आखिर कब जागे गा ये देश और यहाँ के लोग क्या ये उत्तर भारतीय, भारतीय अर्थव्यवस्थ में सहयोग नहीं देते या इनका योगदान मुंबई की अर्थ व्यवस्था को मज़बूत करने में नहीं है । यदि उत्तर भारतीय मुंबई से निकाल दिए जायेंगे तो मुबई की स्थति क्या होगी क्या कभियो सोचा है किसी मुबई वासी ने इस विषय पर नहीं न तो सोचना शुरू कीजिये और आवाज़ बुलंद कीजिये "मनसे" की गयी गुंडागर्दी को पर्तिबंधित करने की । क्या एक व्यक्तियों का समूह इतने शक्तिशाली हो सकता ही की वो भारत के सविधान को चुनौती दे और उस देश की सरकार हाँथ पर हाँथ धरे बैठे रहे । क्या यहाँ की सरकार नपुंसक है वो एक व्यक्ति को प्रतिबंधित नहीं कर सकती या एक संस्था को प्रतिबंधित नहीं कर सकती । मै पूछता हूँ उन लोगों से जिन्हूने उनके नुमैन्दो को चुनाव में जिताया क्या ऐसे लोग देश ये राज्य चलने के योग है जो शुरू से अलगाववाद की राजनीति कर रहे है ।
सही कहा है कवी स्व० पंडित रूप नारायण त्रिपाठी जी ने
लगा ली गले से नफरत मोहब्बत तक नहीं पहुंचे
बसाया झूट को दिल में सदाकत तक नहीं पहुंचे
सितारों तक तुम्हारा ये सफ़र किस काम का जब तुम
अँधेरे में सिसकती आदमियत तक नहीं पहुंचे ।
बेशक तुम्हे अभी तक आदमी बन कर जीना नहीं आया ............
बेशक आप सभी इन घटनाओ को सिर्फ समाचार की तरह पढ़ रहे है लेकिन ज़रा सोचिये भारतीय सविधान को कितना अपमानित होना पद रहा है । जब इसी तरह "सिमी" ने सर बुलंद किया था तो भारतीय सविधान के चाबुक ने उसका सर कुचल दिया और कहा भारत में सभी को हर जगह रहने और काम करने की आज़ादी है , तो फिर अब क्यों चुप है गृह मंत्रालय क्यों नहीं महाराष्ट्र नव निर्माण सेना पर "मनसे" पाबंदी लगायी जाती । क्या यह व्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन नहीं हो रहा है । अब जब सचिन जैसे देश के अनमोल रत्न ने जब ये कहा की मुंबई सभी भारतियों की है तो उनसे कहा गया की आप खेल पर ध्यान दे नाकि सियासत में । शारूख खान को तो पकिस्तान जाने तक का फरमान सुना दिया है इन्हूने "मनसे"। जिस प्रकार से ये कथित गुंडे उतार भारतियों पर कहर बनकर टूट रहे है क्या उससे भी राष्ट्रपति महोदया या किसी ज़िम्मेदार नागरिक को ये अपील या फैसला करते नहीं सुना की इस गुंडागर्दी पर लगाम कासी जाए , क्यों न महाराष्ट्र नव निर्माण सेना को प्रतिबंधित कर दिया जाए । आखिर कब जागे गा ये देश और यहाँ के लोग क्या ये उत्तर भारतीय, भारतीय अर्थव्यवस्थ में सहयोग नहीं देते या इनका योगदान मुंबई की अर्थ व्यवस्था को मज़बूत करने में नहीं है । यदि उत्तर भारतीय मुंबई से निकाल दिए जायेंगे तो मुबई की स्थति क्या होगी क्या कभियो सोचा है किसी मुबई वासी ने इस विषय पर नहीं न तो सोचना शुरू कीजिये और आवाज़ बुलंद कीजिये "मनसे" की गयी गुंडागर्दी को पर्तिबंधित करने की । क्या एक व्यक्तियों का समूह इतने शक्तिशाली हो सकता ही की वो भारत के सविधान को चुनौती दे और उस देश की सरकार हाँथ पर हाँथ धरे बैठे रहे । क्या यहाँ की सरकार नपुंसक है वो एक व्यक्ति को प्रतिबंधित नहीं कर सकती या एक संस्था को प्रतिबंधित नहीं कर सकती । मै पूछता हूँ उन लोगों से जिन्हूने उनके नुमैन्दो को चुनाव में जिताया क्या ऐसे लोग देश ये राज्य चलने के योग है जो शुरू से अलगाववाद की राजनीति कर रहे है ।
सही कहा है कवी स्व० पंडित रूप नारायण त्रिपाठी जी ने
लगा ली गले से नफरत मोहब्बत तक नहीं पहुंचे
बसाया झूट को दिल में सदाकत तक नहीं पहुंचे
सितारों तक तुम्हारा ये सफ़र किस काम का जब तुम
अँधेरे में सिसकती आदमियत तक नहीं पहुंचे ।
बेशक तुम्हे अभी तक आदमी बन कर जीना नहीं आया ............
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