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Monday, February 1, 2010

"मनसे" गुंडागर्दी

अरे यार फैज़ अब मै क्या करूंगा, क्यों क्या हुआ ? होना क्या था अब "मनसे गुंडागर्दी " करने वालों का उत्तर भारतियों के लिए एक नया तुगलकी फरमान आया है की सभी टैक्सी चालकों को लाइसेंस के लिए मराठी बोलना ज़रूरी होगा वरना उन्हें टैक्सी नहीं चलने दी जाएगी । .........
बेशक आप सभी इन घटनाओ को सिर्फ समाचार की तरह पढ़ रहे है लेकिन ज़रा सोचिये भारतीय सविधान को कितना अपमानित होना पद रहा है । जब इसी तरह "सिमी" ने सर बुलंद किया था तो भारतीय सविधान के चाबुक ने उसका सर कुचल दिया और कहा भारत में सभी को हर जगह रहने और काम करने की आज़ादी है , तो फिर अब क्यों चुप है गृह मंत्रालय क्यों नहीं महाराष्ट्र नव निर्माण सेना पर "मनसे" पाबंदी लगायी जाती । क्या यह व्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन नहीं हो रहा है । अब जब सचिन जैसे देश के अनमोल रत्न ने जब ये कहा की मुंबई सभी भारतियों की है तो उनसे कहा गया की आप खेल पर ध्यान दे नाकि सियासत में । शारूख खान को तो पकिस्तान जाने तक का फरमान सुना दिया है इन्हूने "मनसे"। जिस प्रकार से ये कथित गुंडे उतार भारतियों पर कहर बनकर टूट रहे है क्या उससे भी राष्ट्रपति महोदया या किसी ज़िम्मेदार नागरिक को ये अपील या फैसला करते नहीं सुना की इस गुंडागर्दी पर लगाम कासी जाए , क्यों न महाराष्ट्र नव निर्माण सेना को प्रतिबंधित कर दिया जाए । आखिर कब जागे गा ये देश और यहाँ के लोग क्या ये उत्तर भारतीय, भारतीय अर्थव्यवस्थ में सहयोग नहीं देते या इनका योगदान मुंबई की अर्थ व्यवस्था को मज़बूत करने में नहीं है । यदि उत्तर भारतीय मुंबई से निकाल दिए जायेंगे तो मुबई की स्थति क्या होगी क्या कभियो सोचा है किसी मुबई वासी ने इस विषय पर नहीं न तो सोचना शुरू कीजिये और आवाज़ बुलंद कीजिये "मनसे" की गयी गुंडागर्दी को पर्तिबंधित करने की । क्या एक व्यक्तियों का समूह इतने शक्तिशाली हो सकता ही की वो भारत के सविधान को चुनौती दे और उस देश की सरकार हाँथ पर हाँथ धरे बैठे रहे । क्या यहाँ की सरकार नपुंसक है वो एक व्यक्ति को प्रतिबंधित नहीं कर सकती या एक संस्था को प्रतिबंधित नहीं कर सकती । मै पूछता हूँ उन लोगों से जिन्हूने उनके नुमैन्दो को चुनाव में जिताया क्या ऐसे लोग देश ये राज्य चलने के योग है जो शुरू से अलगाववाद की राजनीति कर रहे है ।
सही कहा है कवी स्व० पंडित रूप नारायण त्रिपाठी जी ने
लगा ली गले से नफरत मोहब्बत तक नहीं पहुंचे
बसाया झूट को दिल में सदाकत तक नहीं पहुंचे
सितारों तक तुम्हारा ये सफ़र किस काम का जब तुम
अँधेरे में सिसकती आदमियत तक नहीं पहुंचे ।
बेशक तुम्हे अभी तक आदमी बन कर जीना नहीं आया ............

4 comments:

डॉ. मनोज मिश्र said...

सही कह रहे हैं,सहमत.

Urmi said...

बढ़िया पोस्ट! आपने बिल्कुल सही बात का ज़िक्र किया है!

Vikram Thakur said...

ji karata aapke hoth chum loo kya baat kahi hai aapne

Akhilesh pal blog said...

bahoot hee achha likha hai aapne