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Sunday, April 11, 2010

"वो गूंगी है "

शाम के ६ बजे थे इलाहाबाद का सिविल लाइंसबस डिपो पर लोगों का हुजूम था । हमें भिओ बनारस जाना था और हम कैंट डिपो की बस में सवार थे बस वहां से शाम के ७ बजे चली अभी उसने चुंगी पार ही की थी की एक ७० साल के बुजुर्ग ने बस को हाथ दिया और बस रुक गयी मै एकदम आगे की सीट पर बैठा था इस लिए मुझे सब दिखाई दे रहा था । उसके सात्ढ़ में एक ६० साल की बूढी औरत और एक २२ साल की लड़की भी थी । बस में जगह तो न के बराबर थी पर तभी एक सज्जन कहदे हुए और उन्हूने उन दोनों बुजुर्गों को बैठा लिया वो बुज़ुर्ग बोले भैया ज़रा मेरी पोती को भी जगह दिला देते तो अच्छा होता तभी एक ३५ साल के अधेड़ ने कहा आओ बेटी यहाँ बैठ जाओ और अपने बगल में बैठा लिया जो उन बुज़ुर्ग से थोडा दुरी पर बैठे हुए थे । बस अपनी रफ्ताए में चली जा रही थी जगह-जगह पर सवारियां उतर रही थी और बस आगे बढ़ जा रही थी साथ में मेरे डोक्टर दोस्त भी थे जिनकी नींद चरम सीमा पर थी । अब बस में सन्नाटा पसरा था बहुत कम सवारिया बची थी गोपीगंज पहुचते-पहुचते सभी लोग सो रहे थे और बस द्रुत गति से आगे बढ़ी जा रही थी तभी एक जोर की आवाज़ हुई और बस में अचानक से दरिवेर ने ब्रेक लगा दिए सभी लोग एक दुसरे के गले का हार बन गए थे । तभी बस की लाइट जली तो मैंने देखा की वो अधेड़ व्यक्ति बस के दरवाज़े पर खड़े है और अपनी शर्त के बटन बंद कर रहे है । मैंने घूम के पीछे देखा तो उस लड़की की आँखे बिना कुछ कहे ही सब कुछ बयां कर रही थी ये कुछ और नहीं उस लड़की के दिए हुए तमाचे की आवाज़ थी । तभी सन्नाटे को चीरती एक और आवाज़ लडखडाती हुई आई उस बुज़ुर्ग की जो उस लड़की का दादा था

"अरे बेटा देखना मेरी पोती को तो कुछ नहीं हुआ वो बेचारी कुछ बोल न पायेगी क्योंकि वो गूंगी है " !!!!!!!!!!

3 comments:

Urmi said...

आपने बहुत ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है! बेचारी गूंगी लड़की कैसे बयान करती! घटना पढ़कर ऐसा महसूस हुआ जैसा मैं भी उस बस पर सवार कर रही थी!

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

Bhai mere! Ek saans mein padh gaya....
Tumhari post ko padh ke apne baare mein socha aur paya ke main vahiyaat to hoon par badtameez nahin!
Ye batao, tumne bhi ek tamacha raseed kara us namurad ko ya nahin?

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

Bhai mere! Ek saans mein padh gaya....
Tumhari post ko padh ke apne baare mein socha aur paya ke main vahiyaat to hoon par badtameez nahin!
Ye batao, tumne bhi ek tamacha raseed kara us namurad ko ya nahin?