कल मेरा कैमरा अस्पताल से लौट आया मैंने उसे एक पत्रिका दी ताकि वो बोर न हो ,थोडी ही व्यापार बाद वो मेरे पास आया और मुझे कुछ पढ़ कर सुनाया । वही मै आप को पढ़ना चाहता हूँ । शायद आप को सतीश वर्मा जी का यहाँ रोचक लेख पसंद आएगा ................
जीवन में अब रस नही ,नीरस है परिवार, माता-पिता सर्विस करें , शिशूग्रह है व्यपार ।
स्नेह कहाँ ममता कहाँ 'कीटी-पार्टी' बीच ,बच्चे आया पालती जो धन रही उलीच ।
अठमासे शिशु को नही मम्मी पास सुलाए ,बिगडे फिगर न दूध भी डिब्बा बंद पिलाये ।
माता अब मम्मी बनी पिता बन गए अब डैड , एक बरस का शिशु रहे सोता सिंगल बैड ।
इकसठ में था लव हुआ बासठ हुआ तलाक़ , हुए रास्ते अलग अलग तो बच्चा हुआ तलाक ।
शिछा बिकती है यहअन गली मुहल्ले गाँव , शिशु के पुस्तक भार से सीधे पड़े न पाँव ।
विद्यालय ये है नही क्रूर विद्यालय मात्र ,दुर्वट पुस्तक भार को सहते कोमल गात्र ।
शिछालय तो बन गया हितकारी व्यापार , अल्प्वित शिछ्क सुलभ शिशु की मारामार ।
अब नही रहे वो गुरु -गुरु रहे शिश्यधन छीन , कैसे विद्या पाएंगे श्रधा हिन् मलीन ।
बीस दुधमुहे चल दिए चढ़ के शिछा माहि , भारी बसता लादकर सब विद्यालय जाहि ।
मिले चार सो पे जिसे वह मिस्ट्रेस कहलाये , मैनेजर की नौकरी जो हर शाम बजाये ।
ड्रेस-बेल्ट,कापी-कलम, बिल्ला-बूट-किताब ,विद्यालय से ही मिले पुरा रखे हिसाब ।
पढ़-पढ़कर बालक हुए लछ्य हीन बदहाल, है व्यवसाय न नौकरी ,जीवन है जंजाल ।
उलटा और डरावना पढ़ा रहे इतीहास ,जैसे मुर्दा देश यह पीटने का अभ्यास ।
भवन-तात्पति नही , शिछ्क खडिया नही, बालाहार बाज़ार में ,टीचर निज ग्रह माही ।
चुराहे पर देश है लुटा पित्ता बदहाल , पग-पग मदिराल्ये खुले ,जनता हुई निहाल ।
और अंत में एक लाइन मेरी भी जोड़ लीजिये की.........
नित्य सिकुड़ता जा रहा भारत का भूगोल , तनिक न चिंता देश की नेता गोल-मटोल ।
3 comments:
bahut acchi rachna hai mitra tumhare hi dimag ki upaj hai na.vaise accha hai
antim laine jyada shee hai.
बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने जो प्रशंग्सनीय है! लिखते रहिये!
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