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Sunday, July 19, 2009

"पढ़-पढ़कर बालक हुए लछ्य हीन बदहाल, है व्यवसाय न नौकरी ,जीवन है जंजाल"


कल मेरा कैमरा अस्पताल से लौट आया मैंने उसे एक पत्रिका दी ताकि वो बोर न हो ,थोडी ही व्यापार बाद वो मेरे पास आया और मुझे कुछ पढ़ कर सुनाया । वही मै आप को पढ़ना चाहता हूँ । शायद आप को सतीश वर्मा जी का यहाँ रोचक लेख पसंद आएगा ................

जीवन में अब रस नही ,नीरस है परिवार, माता-पिता सर्विस करें , शिशूग्रह है व्यपार ।

स्नेह कहाँ ममता कहाँ 'कीटी-पार्टी' बीच ,बच्चे आया पालती जो धन रही उलीच ।

अठमासे शिशु को नही मम्मी पास सुलाए ,बिगडे फिगर न दूध भी डिब्बा बंद पिलाये ।

माता अब मम्मी बनी पिता बन गए अब डैड , एक बरस का शिशु रहे सोता सिंगल बैड ।

इकसठ में था लव हुआ बासठ हुआ तलाक़ , हुए रास्ते अलग अलग तो बच्चा हुआ तलाक ।

शिछा बिकती है यहअन गली मुहल्ले गाँव , शिशु के पुस्तक भार से सीधे पड़े न पाँव ।

विद्यालय ये है नही क्रूर विद्यालय मात्र ,दुर्वट पुस्तक भार को सहते कोमल गात्र ।

शिछालय तो बन गया हितकारी व्यापार , अल्प्वित शिछ्क सुलभ शिशु की मारामार ।

अब नही रहे वो गुरु -गुरु रहे शिश्यधन छीन , कैसे विद्या पाएंगे श्रधा हिन् मलीन ।

बीस दुधमुहे चल दिए चढ़ के शिछा माहि , भारी बसता लादकर सब विद्यालय जाहि ।

मिले चार सो पे जिसे वह मिस्ट्रेस कहलाये , मैनेजर की नौकरी जो हर शाम बजाये ।

ड्रेस-बेल्ट,कापी-कलम, बिल्ला-बूट-किताब ,विद्यालय से ही मिले पुरा रखे हिसाब ।

पढ़-पढ़कर बालक हुए लछ्य हीन बदहाल, है व्यवसाय न नौकरी ,जीवन है जंजाल ।

उलटा और डरावना पढ़ा रहे इतीहास ,जैसे मुर्दा देश यह पीटने का अभ्यास ।

भवन-तात्पति नही , शिछ्क खडिया नही, बालाहार बाज़ार में ,टीचर निज ग्रह माही ।

चुराहे पर देश है लुटा पित्ता बदहाल , पग-पग मदिराल्ये खुले ,जनता हुई निहाल ।

और अंत में एक लाइन मेरी भी जोड़ लीजिये की.........

नित्य सिकुड़ता जा रहा भारत का भूगोल , तनिक न चिंता देश की नेता गोल-मटोल ।


3 comments:

jaagte raho said...

bahut acchi rachna hai mitra tumhare hi dimag ki upaj hai na.vaise accha hai

डॉ. मनोज मिश्र said...

antim laine jyada shee hai.

Urmi said...

बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने जो प्रशंग्सनीय है! लिखते रहिये!