Saturday, April 18, 2009
"इंटरनेशनल प्लेयर लीग"
कुछ देर बाद मैंने उससे पूछा ........तुझे तो मैंने "इंडियन प्रेमेयर लीग" को कवर करने साऊथ अफ्रीका भेजा था न फ़िर तो वापस क्यों चला आया ......वो बोला -मैंने अच्छा किया जो चला आया वहां रहता तो मै अपने आप को रोक नही पाटा । मैंने उससे पूछा ऐसा क्या हो गया। उसने कहा.................
इंडियन प्रीमीयर लीग के कमिश्नर ललित मोदी ने इस के पहले सत्र की शुरुआत पर कहा था की ये लीग भारत के उन युवाओं को मौका देने के लिए है जो अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन सही से नही कर पाते । इसके द्वारा वो युवाओ को मौका देना चाहते थे । ताकि हमारे देश को एक मज़बूत टीम मिल सके ...........लेकिन क्या हुआ ,राजस्थान रोयल्स ने अपने ८ इंडियन खिलाडयों को टीम से बाहर का रास्ता दिखा दिया .जिसमे हमारे राज्य का क्रिकेट कैप्टन मोहमद कैफ भी शामिल है । वही उनकी देखी - देखा किंग्स ११ पंजाब ने भी अपने ४ युवा खिलाड़ियों को बाहर निकाल दिया । मुझे इस बात का बड़ा दुःख हुआ और मैं वापस आगया । .........
खैर मेरा कैमरा तो हमेशा ही कुछ न कुछ बोलता रहता है । लेकिन उसने आज एक बहुत अहम् मुद्दा उठाया है ...आप ख़ुद सोचिये क्या विदेशों में होने वाले काउंटी क्रिकेट में विदेशी कैप्टन होते है ...आप ख़ुद कहेंगे नही । तो फिर भारत की प्रीमियर लीग में शामिल ८ टीमो में ५ के कप्तान विदेशी क्यों ? क्या कभी सचिन या फिर द्रविड़ को किसी काउंटी क्लब ने कैप्टन नियुक्त किया है नही न तो फिर हमारे देश में ऐसा क्यों ? क्या हम आज भी उनके गुलाम है ........शायद इस बात से तो यही लगता है ।
अगर ऐसा ही होता रहा तो युवा वर्ग इससे भी किनारा कर लेगा ,और फ़िर वही समस्या सामने आएगी जो पहले थी । प्लेयर अपने घरों और गली क्रिकेट में अपना दम तोड़ देंगे । फिर खिलाड़ियों के चयन में सौदेबाजी शुरू हो जायेगी ............
तो ललित जी सचेत हो जाइये कल को ऐसा न हो की आपकी इंडियन प्रिमेयर लीग धीरे धीरे इंडियन प्लेयर लीग,इंडियन पैसा लीग , इंडियन परदेसी लीग होने के बाद अब ......"इंटरनेशनल प्लेयर लीग "न बन के रह जाए .........वरना न आप को दर्शक मिलेगा और नही पैसा ।
तो फिर सोचना शुरू कीजीये अभी ..................
Tuesday, April 14, 2009
"गली-गली सिम-सिम"
ख़त्म हो गया प्रसार प्रचार ......पहले चरण का मतदान कल ............ सभी प्रत्याशी घर घर जाकर मांग रहे है वोट .....
मेरे कैमरे ने मुझसे कहा फैज़ कल हमारी गली में एक प्रत्याशी आए थे ...वो हमसे वोट की अपील कर रहे थे । कह रहे थे हमें वोट दीजिये हम आपके सपनो का भारत आपको देंगे ....तभी किसी युवा की आवाज़ आई महोदय पिछली बार भी आप आए थे आप ने वोट माँगा था ....हमने दिया भी पर क्या हुआ ....क्या हमारे सपनो का भारत आप हमें दे पाए । तभी किसी ने उसे चुप करा दिया ...तो नेता जी बोले नही नही उसे बोलने दीजिये सही कह रहा है ...फिर उस युवा ने कहना शुरू किया ....आपने नौकरी दिलाने के वादे किए थे सब के सब धरे के धरे रह गए ....हमारे शहर की गलियां वैसे ही बज बजा रही है जैसे पहले थी ...तो फिर क्यों हम आप को वोट दे ....
अब बारी नेता जी की थी ...वो थोड़ा सोच के बोले...हमने सभी कामो को अमली जमा पहनने की कोशिश की लकिन राज्य सरकार हमारे कामो में रोड़ा अटकाती रही ...फिर क्या था फूट पड़ा युवाओ का गुस्सा ....नेता जी के समर्थक युवाओं शांत कराने लगे ......और फिर जो होता है वो तुम भी जानते हो फैज़ ...नेता जी को सर पर पैर रख कर भागना पड़ा ....
लकिन किसी ने सच ही कहा है की ...भारत के कर्ण धार है ये युवा अगर ये जाग गए तो फिर भारत को तरक्की करने से कोई रोक नही सकता । शायद इन युवाओं की शक्ति को पहचान कर ही दुष्यंत कुमार जी ने ये बात कही है ........
इस नदी के धार में ठंडी हवा आती तो है,
नाव जर्जर ही सही लहरों से टकराती तो है।
एक चिंगारी कही से ढूंढ लाओ दोस्तों,
इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है।...........
तो दोस्तों अब जाग जाओ क्योंकि चुनाव कल है दिल खोल के मतदान करो.........
Saturday, April 11, 2009
"क्या सोचते है ये लोग "
"क्या सोचते है ये लोग "
समाज में अलग-अलग वर्ग के प्रादी होते है । वे सामान्य जन से ज़रका हटकर नज़र आते है। उनकी सोच कुछ अलग तरह की होती है । जिनमे कुछ महान होते है । मेरा कैमरा कल एक अखबार की कटिंग पढ़ रहा था । जिसमें सुधा सिंह जी ने काफी दिलचस्प लेख लिखा था इनके बारे में तो आइये मिलते है ऐसे ही कुछ लोगो से ........
१- लेखक वर्ग - लेखक का नाम ही बेचारगी और मायूसी सेजुडा हुआ है इसके दिमाग में हमेश अपनी रचना के प्रकाशन से सम्बंधित बाते घूमती रहती है । वह सोचता है की वह जो भी रचना लिखे या छपने के लिए भेजे वह प्रकाशित हो जाये ।
वह सोचता है - संपादक की फिर जाये मति , मेरी रचना को मिल जाये गति
२- लेखिका वर्ग - आज कल की महिलाये भी कुछ कम भी नहीं समाज का आधा हिस्सा जिसमे से कुछ लेखिका वर्ग की होती है, यह भी अपनी रचनाये प्रकाशित होने के सपने देखती रहती है। कभी कभी इनकी रचनाये सुखेद वापस भी आ जाती है तब उसके दिल क्या गुजरती है उसकी इसी सोच को दर्शाती है यह पंक्तियाँ - काश ! की संपादक मेरा शाहजहाँ होता, मेरी रचना के लिए ताजमहल नहीं
प्रेस खुलवाता
३- शराबी - एक बहुत ही अजीब किस्म का प्राणी ! दीं दुनिया से कोई मतलब नहीं , घर, परिवार, देश सामाज से कुछ लेना देना नहीं । उसकी केवल अपनी दुनिया होती है । वह उसी में अपनी संसार में खोया रहता है । उसे केवल एक ही चीज प्यारी रहती है और वह शराब वह हमेशा यही सोचता है - gaya साल दे गया मुझे गम ही गम, नए साल में मुझे मिले बस रमही रम
४- अफसर- मॉफ कीजियेगा ! किसी व्यक्ति विशेष के लिए यह नहीं है यह है ही ऐसा जीवa ऊँचा वर्ग एक बहुत ही जिम्मेदार आदमी पूरा विभाग उसके आगे पीछे नाचता है पर आखिर है तो वही आदमी न ! सांसारिक सुविधा भोगी वर्ग , कमजोरियों का पुतला , आप से कुछ भी छुपा नहीं है वह जनता है की यह गलत है फिर भी करता है । शायद वह bhi सोचता हो - हे भगवान् ! करो ऐसे विभाग में तबादला जहाँ करने को मिले नित्य प्रति घोटाले दर घोटाला ।
५- जेब कतरा- यह मेरे हिसाब से सबसे विचित्र प्राणी है कभी न कभी आप का पाला इस जीव से अवश् पढ़ा होगा याद कीजिये । याद कीजिये कोई भीड़ वाली जघन जैसे बस स्टैंड , टैक्सी स्टैंड, बाज़ार सिनेमा हाल यहाँ तक की रेस्तरां गार्डन में यह लोग मिल जाते है । शायद कभी आप को मिला हो यह यू ही पहचान में नहीं आता बहुत आत्मीता से आप से मिलेगा , आप के बहुत करीब बैठा होगा सुख दुख की बाते की होंगी विदा लेते समय आप भावुक हो गए होंगे हो सकता है आप की आँखों की कोर भीक गयी ही बाद में पता चला हो की आप ने पैसा निकालना चाह और हाथ ghusta ही चला गया हो पर्स का पता ही नहीं चला हो आप नहीं समझ सके की आप जेब कट गयी। निश्चित ही जेबकतरा यह सोचता होगा - हे भगवान् !हो जाये चमत्कार ऐसा की , लोगों की जेब से निकल ए आप ही आप पैसा।
इन बातों को सुनकर मेरा कैमरा बोला यार फैज़ तो कुछ नही कहेगा । सुधा जी ने चुनावी माहौल के बारे में कुछ नही कहा है मैंने कहा अच्छा सुन मई नेता के बारे में बताता हूँ........
१-नेता-ये बेचारा सा लगने वाला आदमी आप को चुनाव के पहले कही किसी भी चौराहे पर जनता के बीच खड़ा दिखाई देगा । उसके लिए कीचड़ भरी गलियां भी फूलो से सजी दिखाई देते है ये भैस के झुंड की तरह उसे रौंदते हुए चलता है ये जानता है की जनता बेवकूफ है । ये हमेशा यही सोचता रहता है की ......... तुम हमें वोट दो हम ,हम तुम्हे चोट देंगे
२-जनता-ये तो निरा बेवकूफ सा लगने वाला आदमी है । जब चुनाव आता है तो आश्वासनों की शहद से इतना लपेटा जाता है की उसको अपने हित-अहित का ध्यान नही देता । अपने वोट का बिना सोचे समझे इस्तेमाल करता है फ़िर सिस्टम के खिलाफ एक दम से भड़क जाता है । जब दुबारा चुनाव आता है तो फ़िर वही कार्य करती है ये हमारी प्यारी जनता इनके लिए मेरा कहना है.......... ................................ इनका है बस यही गाना ,हर साल आए चुनाव । हमें मिले मलाई और शहद
तो फिर सोचिये क्योंकि वक्त बहुत कम है ........
सोच समझ के वोट करे ........
Wednesday, April 8, 2009
जूते का टेंपो हाई है ...........
Tuesday, April 7, 2009
कहा गए वो लोकलुभावन नारे
मेरा कैमरा अभी -अभी एक चुनावी सभा से लौटा था । मेरे पास आकर बोला फैज़ अब चुनाव की रिपोर्टिंग करने का मन नहीं करता मैंने पुछा क्यों तो कुछ देर रूक के बोला यार अब सारी चुनावी सभाएं नीरस होती है । कुछ मज़ा नहीं आता वह जाने के बाद सिर्फ नेता जी का भाषद सुनने को मिलता है। ..............मै उसकी बात सुन के बोला अच्छा तू उन पुरानी चुनावी सभाओं की बातयाद कर रहा है जहन गगनचुम्बी नारे लगाये जाते थे । ये नारे ही चुनावी समिकरद बदल देते थे । जिसने कई बार प्रत्याशियों को जिताया और हराया है । .............वो बोला हाँ यार अब तो सब नीरस हो गया है पर ऐसा क्यों मेरे समझ में नहीं आया ......मैंने कहा अरे पगले यही तो चुनाव आयोग का चुनावी डंडा है कोई भी कही भी सभा में अपनी प्रशंसा में नारे नहीं लगवा सकता । अगर ऐसा हुआ तो उसका पर्चा रद हो सकता है अगर किसे ने शिकायत की तो .....मेरा कैमरा बोला अच्छा किया फैज़ मुझे बता दिया वरना मै तो आज नारे लगा के आता .......
तो अब आप भी सचेत हो जाये क्योंकि वक़्त बहुत कम है ...........
कुर्सी की Aatmkatha
मेरे लिए लोकतंत्र का जनाजा उठाया जाता है , सविधान को ठेंगा दिखाया जाता है और क़ानून को नज़रबंद कर दिया जाता है । मेरे लिए दोनों 'ध्रुव' एक हो जाते है , दुश्मनों में सुलह हो जाती है " शेर और मेमना मिल जुल कर जंगल राज बनने के लिए प्रयास करते है ।
मै कुर्सी हूँ , यानी सत्ता, हक़, सहूलियत, ऐश्वर्ये ,ख्याति ,मेरे सामने बड़े बढूँ की बूलती बंद हो जाती है, ताकतवर लाचार हो जाता है ,जानकर बे जान हो जाता है ,मेरे लिए रतून रात इमां बदल जाते है ,बैनर बदल जाते है । मै हकीकत हूँ और सब बकवास । मै ही घोशादा पत्रों का सार और विपछ की तीस हूँ ,मुझे हासिल करते ही कंगाल मालामाल और मुर्ख अक्लमंद हो जाता है , मेरे छूने से अंधे देखने लगते है । गरीबे का नामोनिशान मिट जाता है । दौलत से घर भर जाता है । बैएमानी मेरी बुनियाद है , तिकदाम्बाजी मेरा ईमान है , ज़ुल्म मेरा औजार है,झूट मेरा कवच है , घदेयाली आंसू मेरे गहने है , भ्रष्टाचार मेरी औलाद है , फरेब मेरी शान है , सलीका मेरा दुश्मन है ।
लोकतंत्र में मैदान और लडाई के तरीके बदल गए है , अब मुझे नपने के लिए जनता किए सामने "न" निओभाने वाले वादे करने पड़ते है , भूख हड़ताल और पैदल यात्राओं की भीड़ खींचू नाटक भी करने पड़ते है , गुंदू की फौज रखनी पड़ती है ,और किराये पर "जिंदाबाद" कहने वालो की भीड़ रखनी पड़ती है ।,
मै कुर्सी हूँ, जो नुझे हासिल कर लेता है उसे और कुछ पाने की इच्छा नही रहती । एक बार जो मेरी पनाह में आ जाता है वह उमर भर मेरा ही हो कर रह जाता है । मेरे पास आँख और नाक नही है इसलिए मै दुनिया की चीख नही सुन सकता । भूख नागो के हालत नही देख सकती ।
मेरे पास कपटी दीमाग और मज़बूत पैर है मै इन दूनो अंगू का भरपूर इस्तेमाल करता हूँ , अपने दीमाग से राज्नीते की बीसात बेचता इ हूँ । वीरोधियूं के कूचाक्र्र को नाकाम करते हूँ और मज़बूत पैरों से आगे वालोए कुर्सी पे बैठेने वाले को रस में सरबूर कर देती हूँ।
साहित्य के ठेकेदारून ने नौ रासो में मुझे जगह न देकर मेरा अपमान किया है । शीरिंगार रस को रस राज कहा जाता है जबकि मेरे बिना वो भी बेकार है , इसलिए साहित्य के ठेकेदारून को चाहिए की एक नए रस का खुलासा कर दे .कुर्सी रस
saabhar
Dheerendre singh
Saturday, April 4, 2009
क्या होगा अब
ये नारे तो आब आम हो चुके है क्योंकि आ गया है दुनिया के चालबाजों,अमन- चैन को बेचने वालों ,जाती गत राजनीती करने वालो का महा उत्सव ....."चुनाव "फ़िर भी हमारी भोली भली जनता इनका जी जान से सहयोग देती है इन के झूठे आश्वासनों को तूफानी हवा देती है और ये जीत जाते है ........क्या जीतने के बाद ये उन लोगों का हाल पूछते है जो इनके लिए दिन रात लगे रहते है .......इस बारे में मैंने लोगों से पूछातो कुछ ने वही पुराना रटा-रटाया जवाब दिया और बोले "अरे इ साहब लोगन का चोचला है हमका तो सरकार रही तबहूँ काम करना है न रही तबहूँ".....एक दुसरे ग्रेजुएट ने कहा वोट तो हम देते है पर फर्क क्या पड़ता है । तो क्या हम जानवर से बत्तर नही है सोचिये ........मैंने कही एक कही एक कहानी पढ़ी थी वो पेश कर रहा हूँ शायद आप को पसंद आए......
एक कुत्ते ने गधे से कहा -ये कैसा जानवर है इंसान जो बात बेबात लोगों का खून बहाता है हर जगह बेमतलब की आशांति फैलाता है,अपने स्वार्थ के लिए दूसरों का बुरा चाहता है , कागज़ के एक tukade के लिए एक दुसरे को मारता है ,पेट भरा हो तो भी और खाने को मांगता है , न ख़ुद चैन से रहता है न हमें रहने देता है ,हमें तो शर्म आती है ये कहते हुए की हम इनके बीच में रहता है । हमारा बस चले तो इनका सफाया कर दे पर हने इनके जैसे संस्कार नही दिए गए ,हम तो अपनी बिरादरी के लिए जीते मरते है ,हमारी नज़रो में ये सबसे ज़्यादा बुरे है । हमें तो लात मारते है पर ख़ुद तो लात ख्हने के भी काबिल नही है.......पता नही ये जीवन क्यों देते है जब ख़ुद जीने के लायक नही ।
Friday, April 3, 2009
चुनावी कबूतरबाजी
आज मेरा कैमरा मुझसे नाराज़ है ......वो मुझे छोड़कर जाने की बात कर रहा है ......वो कह रहा था की फैज़ के दिल में मेरी लिए अब कोई जगह नहीं है वो तो अब दिन भर अपने कंप्यूटर से चिपका रहता है ......सब घर वालो ने उसे समझाया लेकिन वो मानने को तैयार नहीं है...मैंने भी उससे कह दिया ठीक है फिर तो भी उन्ही कतार में आएगा .....अब वो बैचैन हो उठा और बोला फैज़ तुम किस कतार की बात कर रहे हो मुझे भी तो बताओ,मैंने कहा क्यों अब क्या हुआ वो बड़े विनम्र लहजे में बोला माफ़ कर दो यार बच्चा हूँ .......तभी पीछे से किसे ने कहा चलो लौट के बुधू घर को आये ।
मैंने कहा जनता है मै किन कबूतरों की कतार की बात कर रहा था ,कुछ देर चुप रहने के बाद वो बोला मै कबूतर नज़र आता हूँ क्या । मैंने कहा अरे मै उन कबूतरों की बात नहीं कर रहा हूँ जो शांति का प्रतीक होते है ,मै तो राजनितिक कबूतरों की बात कर रह हूँ जिनकी मंडी चुनाव के ठीक पहले लगती है । सभी दल अपनी अपनी बोली लगते है । वे अपने दल की मलाई दिखाते है ताकि उनकी मलाईदार रबडी देखकर ये फंस जाये लकिन ये कबूतर भी कम चालू नहीं होते ये उसी दल में जाते है जिसकी सत्ता बनती दिखाए पड़ती है क्योंकि मंत्री पद की लालच सभी को होती है सो ये खूब सोच समझ के फैसला करते है .........
मेरा कैमरा बोला फैज़ अगर सभी नेता ऐसे हो गए तो इस देश का क्या होगा ,मैंने कहा घबरा मत हमारे देश की जनता इन कबूतरों को अच्छी तरह से पहचानती है वो इन्हें वोट देकर भारत माँ के सीने पर चोट नहीं लगायेंगे ...इन भीतरघातियों का अंत बहूत बुरा होता है दूसरा दल इन्हें अपने दल में उनके दल की योजनाओ से अवगत होने के लिए ही रखता है । तो सोच लो क्या तुम मुझे छोड़ के जाओगे ......वो बोला नहीं यार मै भीतरघाती नहीं हूँ समझे ............
तो अब फैसले की घडी नज़दीक आ गयीहै ।