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Tuesday, April 7, 2009

कुर्सी की Aatmkatha

मै कुर्सी हूँ ,हर युग मै मेरा जलवा रहा है । मुझे हसीनाओं से भी ज्यादा भाव मिले है । इतीहास गवाह है की ज़्यादातर लडाइयां मेरे लिए ही लड़ी गयी है । मै सब की प्रिय हूँ ,मेरे लिए सभी जान देने को तैयार रहते है। लोगो ने मुझे हासिल करने के लिए अपने रिश्तेदारों तक को मार डाला ,माता पिता को कारगर में डलवा दिया .दोस्तों से मुह मोड़ लिया । मुझसे नाता तोड़ना बेहद मुश्किल है भले ही अपनों से नाता टूट जाये । सभी के लिए मै माननीय अपनाए । जाते है अपनाए जाते है राजनीती में जाती है । तमाम हत्कंडे अपनाए जाते है । राजनीति में बहुबल और कूटनीतिके ज़रिये मै प्राप्त होती हों । मै नेताओं की पैदल यात्राओं ,आंदोलनों ,भूख हड़तालों का इनाम हूँ । जिसने मेरी अनदेखी की उसके जीवन में अँधेरा छा गया । जिसने मुझे लात मारी वो दुनिया की लात का शीकार बना ।
मेरे लिए लोकतंत्र का जनाजा उठाया जाता है , सविधान को ठेंगा दिखाया जाता है और क़ानून को नज़रबंद कर दिया जाता है । मेरे लिए दोनों 'ध्रुव' एक हो जाते है , दुश्मनों में सुलह हो जाती है " शेर और मेमना मिल जुल कर जंगल राज बनने के लिए प्रयास करते है ।
मै कुर्सी हूँ , यानी सत्ता, हक़, सहूलियत, ऐश्वर्ये ,ख्याति ,मेरे सामने बड़े बढूँ की बूलती बंद हो जाती है, ताकतवर लाचार हो जाता है ,जानकर बे जान हो जाता है ,मेरे लिए रतून रात इमां बदल जाते है ,बैनर बदल जाते है । मै हकीकत हूँ और सब बकवास । मै ही घोशादा पत्रों का सार और विपछ की तीस हूँ ,मुझे हासिल करते ही कंगाल मालामाल और मुर्ख अक्लमंद हो जाता है , मेरे छूने से अंधे देखने लगते है । गरीबे का नामोनिशान मिट जाता है । दौलत से घर भर जाता है । बैएमानी मेरी बुनियाद है , तिकदाम्बाजी मेरा ईमान है , ज़ुल्म मेरा औजार है,झूट मेरा कवच है , घदेयाली आंसू मेरे गहने है , भ्रष्टाचार मेरी औलाद है , फरेब मेरी शान है , सलीका मेरा दुश्मन है ।
लोकतंत्र में मैदान और लडाई के तरीके बदल गए है , अब मुझे नपने के लिए जनता किए सामने "न" निओभाने वाले वादे करने पड़ते है , भूख हड़ताल और पैदल यात्राओं की भीड़ खींचू नाटक भी करने पड़ते है , गुंदू की फौज रखनी पड़ती है ,और किराये पर "जिंदाबाद" कहने वालो की भीड़ रखनी पड़ती है ।,
मै कुर्सी हूँ, जो नुझे हासिल कर लेता है उसे और कुछ पाने की इच्छा नही रहती । एक बार जो मेरी पनाह में आ जाता है वह उमर भर मेरा ही हो कर रह जाता है । मेरे पास आँख और नाक नही है इसलिए मै दुनिया की चीख नही सुन सकता । भूख नागो के हालत नही देख सकती ।
मेरे पास कपटी दीमाग और मज़बूत पैर है मै इन दूनो अंगू का भरपूर इस्तेमाल करता हूँ , अपने दीमाग से राज्नीते की बीसात बेचता इ हूँ । वीरोधियूं के कूचाक्र्र को नाकाम करते हूँ और मज़बूत पैरों से आगे वालोए कुर्सी पे बैठेने वाले को रस में सरबूर कर देती हूँ।
साहित्य के ठेकेदारून ने नौ रासो में मुझे जगह न देकर मेरा अपमान किया है । शीरिंगार रस को रस राज कहा जाता है जबकि मेरे बिना वो भी बेकार है , इसलिए साहित्य के ठेकेदारून को चाहिए की एक नए रस का खुलासा कर दे .कुर्सी रस
saabhar
Dheerendre singh

7 comments:

Anil Kumar said...

यह भी खूब रही!

डॉ. मनोज मिश्र said...

surdr aur dilchsp

Urmi said...

आप तो मुझे शर्मिंदा कर रहे हैं! मैं तो बस कोशिश करती हूँ लिखने की पर आप तो इतने सुंदर लिखते हैं की जवाब नहीं! बहुत खूब!

Unknown said...

Nic

Unknown said...

Nice update more essay

Knowledge in a glance. said...

Kya baat hai very nice👏👏👍👍😊😊

Knowledge in a glance. said...

Sach mai padhkar majaa aa gaya! Waah bhai waah.