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Friday, April 3, 2009

चुनावी कबूतरबाजी

आज मेरा कैमरा मुझसे नाराज़ है ......वो मुझे छोड़कर जाने की बात कर रहा है ......वो कह रहा था की फैज़ के दिल में मेरी लिए अब कोई जगह नहीं है वो तो अब दिन भर अपने कंप्यूटर से चिपका रहता है ......सब घर वालो ने उसे समझाया लेकिन वो मानने को तैयार नहीं है...मैंने भी उससे कह दिया ठीक है फिर तो भी उन्ही कतार में आएगा .....अब वो बैचैन हो उठा और बोला फैज़ तुम किस कतार की बात कर रहे हो मुझे भी तो बताओ,मैंने कहा क्यों अब क्या हुआ वो बड़े विनम्र लहजे में बोला माफ़ कर दो यार बच्चा हूँ .......तभी पीछे से किसे ने कहा चलो लौट के बुधू घर को आये ।

मैंने कहा जनता है मै किन कबूतरों की कतार की बात कर रहा था ,कुछ देर चुप रहने के बाद वो बोला मै कबूतर नज़र आता हूँ क्या । मैंने कहा अरे मै उन कबूतरों की बात नहीं कर रहा हूँ जो शांति का प्रतीक होते है ,मै तो राजनितिक कबूतरों की बात कर रह हूँ जिनकी मंडी चुनाव के ठीक पहले लगती है । सभी दल अपनी अपनी बोली लगते है । वे अपने दल की मलाई दिखाते है ताकि उनकी मलाईदार रबडी देखकर ये फंस जाये लकिन ये कबूतर भी कम चालू नहीं होते ये उसी दल में जाते है जिसकी सत्ता बनती दिखाए पड़ती है क्योंकि मंत्री पद की लालच सभी को होती है सो ये खूब सोच समझ के फैसला करते है .........

मेरा कैमरा बोला फैज़ अगर सभी नेता ऐसे हो गए तो इस देश का क्या होगा ,मैंने कहा घबरा मत हमारे देश की जनता इन कबूतरों को अच्छी तरह से पहचानती है वो इन्हें वोट देकर भारत माँ के सीने पर चोट नहीं लगायेंगे ...इन भीतरघातियों का अंत बहूत बुरा होता है दूसरा दल इन्हें अपने दल में उनके दल की योजनाओ से अवगत होने के लिए ही रखता है । तो सोच लो क्या तुम मुझे छोड़ के जाओगे ......वो बोला नहीं यार मै भीतरघाती नहीं हूँ समझे ............

तो अब फैसले की घडी नज़दीक आ गयीहै ।