आज मै काफी दिन के बाद कंप्यूटर पर काम कर रहा था की मेरा कैमरा मुझसे आकर बोला ,फैज़ कहा था तो दिखाई नही दे रहा था ,क्या कही गया हुआ था ....नही यार मेरे एक्साम चल रहे थे । अच्छा बता क्या बात है । कुछ नही तेरे छेत्र से जोड़ी एक ख़बर थी ,जनता है आंध्र प्रदेश में हैदराबाद से १०० किलोमीटर दूर पास्ता पुर गाँव में महिलाओं ने एक कम्युनिटी रेडियो की शुरूआत की है ।
अच्छा तू मुझे विस्तार से बता ,ले सुन............... आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद से 100 किलोमीटर दूर पस्तापुर गाँव में स्थानीय कम्यूनिटी रेडियो ग़रीब महिलाओं के लिए खेतीबाड़ी की सूचना देने के साथ-साथ उनकी एक आवाज़ बन कर उभरा है ।डेक्कन डेवलपमेंट सोसायटी (डीडीएस) से जुड़ी एक कार्यकर्ता टी मंजुला लोगों के घर जाकर पैदावार के बारे में पूछताछ करती है और खाद्य वितरण करती हैं. ये उनके नियमित काम का हिस्सा तो है मगर वह अपनी रेडियो पत्रकार की भूमिका को लेकर काफ़ी उत्साहित हैं. पस्तापुर के एक साधारण घर में बने स्टूडियो से हर दिन दो घंटे प्रसारित होने वाले रेडियो कार्यक्रम में खेतीबाड़ी, स्वास्थ्य और संगीत के बारे में छोटी-बड़ी जानकारी दी जाती है. गाँव में ज्यादातर ग़रीब दलित महिलाएँ हैं. टी मंजुला भी भारतीय समाज के हाशिए पर रहने वाली एक जाति से ताल्लुक रखती हैं. वह कहती हैं, "स्थानीय स्तर पर मौजूद ज्ञान के भंडार को इकट्ठा करना हमारे लिए सुखद अनुभव है । यदि ऐसा नहीं करते तो ये अनुभव परिवारों में ही सिमट कर रह जाते । " मंजुला का कहना है, "कई लोगों को इससे फ़ायदा हुआ है और मैं हर दिन कुछ नया सीख रही हूँ ।"कम्यूनिटी रेडियो गाँव में इस कदर चर्चित हुआ है कि गाँव की कई महिलाएँ रेडियो कार्यक्रम में अपना योगदान दे रही है । क्यों है न कमाल की बात फैज़ सिमित संसाधनों में इतना सब कुछ ,वाकई कबीले तारीफ है । इतना ही नही ये जानकारी के साथ आमदनी भी करती है ...........खेतीबाड़ी के काम के अलावा एच लक्ष्मम्मा कम्यूनिटी रेडियो के लिए हर महीने क़रीब 10 घंटे का कार्यक्रम तैयार करती है । वह कहती हैं कि इससे उन्हें क़रीब 450 रुपए हर महीने मिलते हैं जिससे वह अपने घर वालों के लिए खाद्य सामग्री ख़रीदती हैं । लक्ष्मम्मा के पति ने कई वर्ष पहले उन्हें छोड़ दिया था। वह अपनी एक बच्ची का लालन-पालन ख़ुद करती हैं साथ ही वह डीडीएस की प्रमुख सदस्य भी बन गई हैं । गाँव में महिलाओं का जीवन कठिन है । औपचारिक शिक्षा के अभाव में वे पास के खेत में मज़दूरी करती हैं । गाँव में कम्यूनिटी रेडियो के आने से पहले उन्हें खेतीबाड़ी के क्षेत्र में इस्तेमाल किए जाने वाली नई तकनीकी, कैसे अपने फसल को बेहतर दामों में बेचा जाए इसकी बहुत कम जानकारी रहती थी । वे आस-पड़ोस को लोगों से बात कर या खेत में साथ काम करने वाले मज़दूरों से ही जानकारी जुटाती थीं । कम्यूनिटी रेडियो के माध्यम से अब वे ज्यादा से ज्यादा जानकारी पा रही है ।
तो अब तुम्ही बताओ फैज़ कौन कहता ही की महिलाये कमज़ोर है । कौन कहता है की ये अबला है .......
मेरा कैमरा शायद सच कह रहा है ,आप ही बताइए क्या सरकार को इनको आराछाद देना चाहिए ....या नही ,क्योंकि हो सकता है कल को ये कमुनिटी रेडियो भारत को विश्व पटल पर अंकित करने में महती भूमिका निभाए । तो सोचिये और बताइए........
8 comments:
mahilaon ka daur hai bhai ye to hona hi hai .ye to kuch bhi nahi hai ... pichi\er abhi baki hai meree dost
फैज साहब, आपकी बातों से मैं पूरी तरह से इत्तेफाक रखता हूं।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
कहीं खुले आम कहना भी मत कि महिलाऐं कमजोर हैं..
आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
अच्छी लगी आपकी पोस्ट! बहुत खूब! आप ये तो मानते हैं न कि महिलाएं पुरूष से कुछ कम नहीं है!
achchhi khabar hai...achchha laga
बहुत बढिया लिखा है।
वह मज़ा आगया, सुंदर पोस्ट है आपकी । रही बात हमारी मजबूती की तो हम पहले भी मज़बूत थे, आज भी है, और कल भी रहेंगे .....
mahilaon ke baare me kisi ne to accha likha .achhi post k liye badhai ....
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