"क्या सोचते है ये लोग "
समाज में अलग-अलग वर्ग के प्रादी होते है । वे सामान्य जन से ज़रका हटकर नज़र आते है। उनकी सोच कुछ अलग तरह की होती है । जिनमे कुछ महान होते है । मेरा कैमरा कल एक अखबार की कटिंग पढ़ रहा था । जिसमें सुधा सिंह जी ने काफी दिलचस्प लेख लिखा था इनके बारे में तो आइये मिलते है ऐसे ही कुछ लोगो से ........
१- लेखक वर्ग - लेखक का नाम ही बेचारगी और मायूसी सेजुडा हुआ है इसके दिमाग में हमेश अपनी रचना के प्रकाशन से सम्बंधित बाते घूमती रहती है । वह सोचता है की वह जो भी रचना लिखे या छपने के लिए भेजे वह प्रकाशित हो जाये ।
वह सोचता है - संपादक की फिर जाये मति , मेरी रचना को मिल जाये गति
२- लेखिका वर्ग - आज कल की महिलाये भी कुछ कम भी नहीं समाज का आधा हिस्सा जिसमे से कुछ लेखिका वर्ग की होती है, यह भी अपनी रचनाये प्रकाशित होने के सपने देखती रहती है। कभी कभी इनकी रचनाये सुखेद वापस भी आ जाती है तब उसके दिल क्या गुजरती है उसकी इसी सोच को दर्शाती है यह पंक्तियाँ - काश ! की संपादक मेरा शाहजहाँ होता, मेरी रचना के लिए ताजमहल नहीं
प्रेस खुलवाता
३- शराबी - एक बहुत ही अजीब किस्म का प्राणी ! दीं दुनिया से कोई मतलब नहीं , घर, परिवार, देश सामाज से कुछ लेना देना नहीं । उसकी केवल अपनी दुनिया होती है । वह उसी में अपनी संसार में खोया रहता है । उसे केवल एक ही चीज प्यारी रहती है और वह शराब वह हमेशा यही सोचता है - gaya साल दे गया मुझे गम ही गम, नए साल में मुझे मिले बस रमही रम
४- अफसर- मॉफ कीजियेगा ! किसी व्यक्ति विशेष के लिए यह नहीं है यह है ही ऐसा जीवa ऊँचा वर्ग एक बहुत ही जिम्मेदार आदमी पूरा विभाग उसके आगे पीछे नाचता है पर आखिर है तो वही आदमी न ! सांसारिक सुविधा भोगी वर्ग , कमजोरियों का पुतला , आप से कुछ भी छुपा नहीं है वह जनता है की यह गलत है फिर भी करता है । शायद वह bhi सोचता हो - हे भगवान् ! करो ऐसे विभाग में तबादला जहाँ करने को मिले नित्य प्रति घोटाले दर घोटाला ।
५- जेब कतरा- यह मेरे हिसाब से सबसे विचित्र प्राणी है कभी न कभी आप का पाला इस जीव से अवश् पढ़ा होगा याद कीजिये । याद कीजिये कोई भीड़ वाली जघन जैसे बस स्टैंड , टैक्सी स्टैंड, बाज़ार सिनेमा हाल यहाँ तक की रेस्तरां गार्डन में यह लोग मिल जाते है । शायद कभी आप को मिला हो यह यू ही पहचान में नहीं आता बहुत आत्मीता से आप से मिलेगा , आप के बहुत करीब बैठा होगा सुख दुख की बाते की होंगी विदा लेते समय आप भावुक हो गए होंगे हो सकता है आप की आँखों की कोर भीक गयी ही बाद में पता चला हो की आप ने पैसा निकालना चाह और हाथ ghusta ही चला गया हो पर्स का पता ही नहीं चला हो आप नहीं समझ सके की आप जेब कट गयी। निश्चित ही जेबकतरा यह सोचता होगा - हे भगवान् !हो जाये चमत्कार ऐसा की , लोगों की जेब से निकल ए आप ही आप पैसा।
इन बातों को सुनकर मेरा कैमरा बोला यार फैज़ तो कुछ नही कहेगा । सुधा जी ने चुनावी माहौल के बारे में कुछ नही कहा है मैंने कहा अच्छा सुन मई नेता के बारे में बताता हूँ........
१-नेता-ये बेचारा सा लगने वाला आदमी आप को चुनाव के पहले कही किसी भी चौराहे पर जनता के बीच खड़ा दिखाई देगा । उसके लिए कीचड़ भरी गलियां भी फूलो से सजी दिखाई देते है ये भैस के झुंड की तरह उसे रौंदते हुए चलता है ये जानता है की जनता बेवकूफ है । ये हमेशा यही सोचता रहता है की ......... तुम हमें वोट दो हम ,हम तुम्हे चोट देंगे
२-जनता-ये तो निरा बेवकूफ सा लगने वाला आदमी है । जब चुनाव आता है तो आश्वासनों की शहद से इतना लपेटा जाता है की उसको अपने हित-अहित का ध्यान नही देता । अपने वोट का बिना सोचे समझे इस्तेमाल करता है फ़िर सिस्टम के खिलाफ एक दम से भड़क जाता है । जब दुबारा चुनाव आता है तो फ़िर वही कार्य करती है ये हमारी प्यारी जनता इनके लिए मेरा कहना है.......... ................................ इनका है बस यही गाना ,हर साल आए चुनाव । हमें मिले मलाई और शहद
तो फिर सोचिये क्योंकि वक्त बहुत कम है ........
सोच समझ के वोट करे ........
4 comments:
bahut khoob paribhaashaayein dee hain aapne is drishtikon se to maine aaj tak nahin dekhaa tha, aapkee lekhanee prabhaavit kartee hai, likhte rahein.
सुधा जी ने प्रस्तुत वर्गों का चित्रण बखूबी किया है...और आज कल 'लेखिका वर्ग'की बात कही जाये तो ब्लॉग्गिंग ने उनकी इस परेशानी का हल दे दिया है..खुद लिखें और खुद ही प्रकाशित करें...बिलकुल अपनी मर्ज़ी से..
एक मजेदार लेख पढ़वाने हेतु आप का आभार.
bahut sundar vivran
पहले तो मैं आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हूँ कि आपको मेरी शायरी पसंद आई और आपके सुंदर टिपण्णी के लिए धन्यवाद!
बहुत ही उन्दा लिखा है आपने!
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