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Monday, March 1, 2010

"हमारा देखिये चेहरा बजट की मार है - होली"

वह मज़ा आ गया क्या हुडदंग था होली का , अब तो लगभग समाप्ति की तरफ अग्रसर है या हुडदंग । मै और मेरा कैमरा अभी अभी दशास्वमेध घाटसे रंगों में सराबोर होकर आये है । वहां एक अख़बार का टुकड़ा उसे चहेलकदमी करता हुआ दिख गया जिसे वो उठा लाया , काफी पुराना सा आधा फटा हुआ था पर उसमे किसी अज्ञात कवी की रचना का उल्लेख था , इत्तेफाक से वह भी होली पर शायद कोई उसे पुरे अख़बार को लेकर आया होगा और वो होली का हुडदंग देखकर उसमे से अलग हो गया होगा । उसी को यहाँ पेश कर रहा हूँ शायद आप को पसंद आये .......

अहा , क्या चीज़ है रंगों का प्यारा मेल - होली में , फरखाबादका जैसे है खुल्ला खेल - होली में ।
छिछोरों - शोहदों की देख धक्कमपेल - होली में , किसी को बाह के घेरे किसी को जेल - होली में ।
न कोई पराया है न कोई बेमेल - होली में , बिना पहिये बिना पटरी के चलती रेल है - होली में ।
व्यवस्था और गुंडों का हुआ फिर मेल - होली में , करें क्या , सिर्फ जनता का निकलता तेल - होली में ।
उमंगों और मस्ती की है रेलमपेल - होली में , उधर लथ्मारियों में चली - ठेलमठेल - होली में ।
इशारों और फुहारों की लगी है सेल - होली में , कन्हैया भेजता राधा को अब ई मेल - होली में ।

यह कविता पढ़कर मुझे भी कुछ तुकबंदी करने की सोची और इसी लयमें कुछ लिख डाला जो मैंने होली के हुडदंग में नज़र आया .......
बड़ी दमदार होली है , बड़ी तैयार है - होली , है खली घर मगर पूरा भरा बाज़ार है - होली ।
ये डाकू ,चोर, रहजन है , बड़ी बटमार है - होली , हमारा देखिये चेहरा बजट की मार है - होली ।

1 comment:

Udan Tashtari said...

कन्हैया भी अब ईमेल ही करेंगे राधा को...बढ़िया!!



ये रंग भरा त्यौहार, चलो हम होली खेलें
प्रीत की बहे बयार, चलो हम होली खेलें.
पाले जितने द्वेष, चलो उनको बिसरा दें,
खुशी की हो बौछार,चलो हम होली खेलें.


आप एवं आपके परिवार को होली मुबारक.

-समीर लाल ’समीर’